Wednesday, January 19, 2022

लघुकथा। पत्थर की आंख



यह दो दोस्तों की कहानी है। एक दोस्त अमेरिका चला गया। बीस-बाईस बरस बाद वह पैसा कमाके भारत लौट आया। दूसरा भारत में ही रहा। वह ग़रीब से और ज्यादा ग़रीब होता चला गया। अमीर ने बहुत बड़ी कोठी बनवाई। उसने अपने पुराने दोस्तों को भी याद किया। ग़रीब दोस्त मिलने गया। बातें हुईं।

ग़रीब ने कहा-तुमने बहुत अच्छा किया दोस्त, अमेरिका दुनिया-भर के हम ग़रीबों को लूटता है, तुम अमेरिका को लूट लाए। अमीर दोस्त यह सुनकर ख़ुश हुआ।

काफ़ी दिन गुज़र गए। ग़रीब दोस्त के दिन परेशानियों में गुज़र रहे थे। वह कुछ मदद-इमदाद के लिए अमीर दोस्त से मिलना भी चाहता था। तभी अमीर दोस्त की पत्नी का देहान्त अमेरिका में हो गया। वह अपने पति के साथ भारत नहीं लौटी थी। वह भारत में नहीं रहना चाहती थी। दोस्त की पत्नी के स्वर्गवास की ख़बर पाकर ग़रीब दोस्त मातम-पुर्सी के लिए गया। उसने गहरी शोक-संवेदना प्रकट की। 

अमीर दोस्त ने कहा-वैसे इतना शोक प्रकट करने की ज़रूरत नहीं है दोस्त, क्योंकि वह अमेरिका में बहुत ख़ुश थी...वहीं ख़ुशियों के बीच उसने अन्तिम सांस ली। 

वह यहां होती और यहां उसकी मौत होती तो मुझे ज़्यादा दुःख होता। ...क्योंकि वह दुःखी मरती...पर फिर भी वह मेरी बीवी थी, इसलिए आंख में आंसू आ ही गए....कह कर अमीर दोस्त ने आंख पोंछ ली...

ग़रीब दोस्त दुःख की इस कमी-बेशी वाली बात को समझ नहीं पाया था। लेकिन वह चुप रहा।

‘और क्या हाल हैं तुम्हारे?’ अमीर ने पूछा।

‘हाल तो अच्छे नहीं हैं!’

‘क्यों, क्या हुआ?’

‘अब क्‍या बताऊं, यह ऐसा मौक़ा भी नहीं है!’

‘बताओ. ...बताओ. ...ऐसी भी क्‍या बात है...’

‘अब रहने दो...’

‘अरे बोलो न...’

‘वो दोस्त...बात यह है कि मुझे पांच हज़ार रुपए की सख़्त ज़रूरत है।’

अमीर दोस्त एक पल के लिए ख़ामोश हो गया।

ग़रीब दोस्त को अपनी ग़लती का एहसास-सा हुआ। वह बोला,‘मैं माफ़ी चाहता हूं...यह मौक़ा ऐसा नहीं था कि मैं...’

अमीर दोस्त ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा,‘नहीं, नहीं...ऐसी कोई बात नहीं, मैं कुछ और सोच रहा था।’

‘क्या?’

‘यही कि तुम्हें मांगना ही था तो कुछ मेरी इज़्ज़त-औकात को देख के मांगते!’

ग़रीब को बात लग गई। उसने थोड़ी तल्खी से कहा,‘तो पचास हज़ार दे दो!’

‘तो दोस्त, बेहतर होता, तुम अपनी औकात देखकर मांगते!’ अमीर दोस्त ने कह तो दिया पर अपनी बदतमीज़ियों को हल्का बनाने के लिए अमीर लोग कभी-कभी कुछ शगल भी कर डालते हैं, उसी शगल के मूड में अमीर बोला,‘दोस्त, एक बात अगर बता सको तो मैं तुम्हें पचास हज़ार भी दे दूंगा!’

‘कौन सी बात!’

‘देखो...मेरी आंखों की तरफ़ देखो! मेरी एक आंख पत्थर की है।

मैंने अमेरिका में बनवाई थी...अगर तुम बता सको कि मेरी कौन सी आंख पत्थर की है तो मैं पचास हज़ार अभी दे दूंगा।’

‘तुम्हारी दाहिनी आंख पत्थर की है!’ ग़रीब दोस्त ने फौरन कहा।

‘तुमने कैसे पहचानी?’

‘अभी दो मिनट पहले तुम्हारी दाहिनी आंख में आंसू आया था... आज के ज़माने में असली आंखों में आंसू नहीं आते। पत्थर की आंख में ही आ सकते हैं।’ 


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