Friday, June 24, 2022

कविता। दो बूँदें । Do Boondein | जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad


 

शरद का सुंदर नीलाकाश

निशा निखरी, था निर्मल हास

बह रही छाया पथ में स्वच्छ

सुधा सरिता लेती उच्छ्वास

पुलक कर लगी देखने धरा

प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद

सु शीतलकारी शशि आया

सुधा की मनो बड़ी सी बूँद!


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