Sunday, July 24, 2022

कविता | अनोखा दान | सुभद्राकुमारी चौहान | Kavita | Anokha Daan | Subhadra Kumari Chauhan



 अपने बिखरे भावों का मैं

गूँथ अटपटा सा यह हार।

चली चढ़ाने उन चरणों पर,

अपने हिय का संचित प्यार॥


डर था कहीं उपस्थिति मेरी,

उनकी कुछ घड़ियाँ बहुमूल्य

नष्ट न कर दे, फिर क्या होगा

मेरे इन भावों का मूल्य?


संकोचों में डूबी मैं जब

पहुँची उनके आँगन में

कहीं उपेक्षा करें न मेरी,

अकुलाई सी थी मन में।


किंतु अरे यह क्या,

इतना आदर, इतनी करुणा, सम्मान?

प्रथम दृष्टि में ही दे डाला

तुमने मुझे अहो मतिमान!


मैं अपने झीने आँचल में

इस अपार करुणा का भार

कैसे भला सँभाल सकूँगी

उनका वह स्नेह अपार।


लख महानता उनकी पल-पल

देख रही हूँ अपनी ओर

मेरे लिए बहुत थी केवल

उनकी तो करुणा की कोर।


No comments:

Post a Comment

Short Story | Madam Crowl's Ghost | Joseph Thomas Sheridan Le Fanu

Joseph Thomas Sheridan Le Fanu Madam Crowl's Ghost Twenty years have passed since you last saw Mrs. Jolliffe's tall slim figure. She...