Sunday, July 24, 2022

कविता | जलियाँवाला बाग में बसंत | सुभद्राकुमारी चौहान | Kavita | Jaliyanwala baag mein Basant | Subhadra Kumari Chauhan



 यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,

काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।


कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,

वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।


परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,

हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।


ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,

यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।


वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना,

दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना।


कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,

भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें।


लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,

तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले।


किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,

स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना।


कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर,

कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर।


आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,

अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं।


कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना,

कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना।


तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,

शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर।


यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना,

यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।


No comments:

Post a Comment

Fairy Tale - The Little Match Girl (Hans Christian Anderson)

Hans Christian Andersen Fairy Tale - The Little Match Girl Most terribly cold it was; it snowed, and was nearly quite dark, and evening-- th...