Thursday, July 14, 2022

प्रबंध काव्य | पद्मावत (रत्नसेन-संतति-खण्ड) | मलिक मोहम्मद जायसी | Prabandh Kavya | Padmavat / Ratnasen Santati Khand | Malik Muhammad Jayasi



 जाएउ नागमति नागसेनहि । ऊँच भाग, ऊँचै दिन रैनहि ॥

कँवलसेन पदमावति जाएउ । जानहुँ चंद धरति मइँ आएउ ॥

पंडित बहु बुधिवंत बोलाए । रासि बरग औ गरह गनाए ॥

कहेन्हि बडे दोउ राजा होहीं । ऐसे पूत होहिं सब तोहीं ॥

नवौं खंड के राजन्ह जाहीं । औ किछु दुंद होइ दल माहीं ॥

खोलि भँडारहिं दान देवावा । दुखी सुखी करि मान बढावा ॥

जाचक लोग, गुनीजन आए । औ अनंद के बाज बधाए ॥


बहु किछु पावा जोतिसिन्ह औ देइ चले असीस ।

पुत्र, कलत्र, कुटुंब सब जीयहिं कोटि बरीस ॥1॥



(1) जाएउ = उत्पन्न किया, जना । ऊँचे दिन रैनहि = दिन-रात में वैसा ही बढता गया । दुंद = झगडा, लडाई ।


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