(एक बंगलानूमा मकान – सामने बरांडा है, जिसमें ईंटों के गोल खंबे हैं। बरांडे में दो-तीन मोढ़े बेदंगेपन के साथ रखे हुए है। बरामदे के पीछे तीन दरवाजों का एक कमरा है। कमरे में दोनों तरफ दो कोठरियाँ है। कमरे में दरी का फर्श है जो कई जगह फटा हुआ है। बीच में एक गोल मेज है, जिस पर मेजपोश पड़ा हुआ है और एक गुलदस्ता पड़ा हुआ है, जिसके फूल सूख गए हैं। पाँच बेंत की कुर्सियाँ हैं, जिन पर गर्द पड़ी हुई है, मैली और फटी हुई दीवारों पर कई ईसाई धर्म-विषय के पुराने चित्र हैं, जिन पर गर्द पड़ी है। एक कैलेन्डर है और एक तरफ एक बड़ा शीशा हैं। दाहिनी तरफ वाली कोठरी में दो कोच हैं, बेंत के मगर टूटे हुए। बायीं तरफ वाली कोठरी में एक कुर्सी और प्यानो है। कमरे के पीछे वाली दीवार में एक दरवाजा है, जो अंदर जाता है। भीतर एक छोटा-सा आंगन है, आंगन में पानी का नल और मुर्गियों का दरबा है, एक कोने में बावर्चीखाना है। सभी दरवाजों पर मैले परदे पड़े हुए है)
(मिस जेनी बायीं तरफ वाली कोठरी में प्यानो पर बैठी गा रही है। उसकी उम्र 18-20 साल की होगी, साँवला रंग, बड़ी-बड़ी आँखें, हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पारसी फैशन से पहने हुए रहन-सहन से ऐसा मालूम होता है, औसत दरजे की ईसाई परिवार है। फर्नीचर, फर्श सब कुछ उसी तरह का है, जैसा गुदड़ी बाजार में मिला करता है। मिस जेनी गाती है – 'कभी हमसे तुमसे भी प्यार था, तुम्हें याद हो कि न याद हो।')
(मिसेज गार्डन अन्दर से आँखें मलती हुई आती है। वह अधेड़ स्त्री है, गोरी, सिर के बाल खिचड़ी, मुख से चिन्ता झलक रही है। वह स्कर्ट पहने हुए है। स्कर्ट मैला हो गया है, जो उसके निर्बल शरीर पर खिलता नहीं)
मिसेज गार्डन – आज विलियम आता होगा। तू अभी तक यूँ ही बैठी हुई है?
जेनी – तो क्या करूँ, नाचूँ, या ढोल बजाऊँ?
मिसेज गार्डन – इसी तरह मेहमानों का स्वागत किया जाता है? अभी तक न मुँह धोया, न कुछ मेक-अप किया।
जेनी – मैंने कह दिया, मेरी तबीयत उनसे नहीं मिलती। आप बरबस उनके पीछे पड़ी हुई है।
मिसेज गार्डन – तुम तो बेटी, कभी-कभी ऐसी बातें करने लगती हो, जैसे घर का हाल कुछ जानती ही न हो। विलियम में क्या बुराई है, जरा सुनें? या यह भी कोई जिद है कि मेरी तबीयत उससे नहीं मिलती। अच्छा-खासा जवान है। शक्ल-सूरत भी बुरी नहीं, बड़ा ही हँस-मुख, बड़ा नेक चलन, बड़ा चरित्रवान, न शराब से मतलब, न किसी और शौक़ से, और मुझे कैसा आदमी चाहिए चार पैसे कमाता है, घर में भी कुछ जायदाद है, और आदमी में क्या चाहिए। फैशनेबल नहीं है, यही ऐब है। मगर तू इसे ऐब समझ, मैं तो हुनर समझती हूँ। मैं सच कहती हूँ, बूढ़ी न होती, तो उससे जरूर शादी कर लेती। तुम्हारे पापा को गुज़रे आज पाँचवाँ साल है। हाथ में जो कुछ था, वह सब निकल गया। अब काम कैसे चले? माना अब तू ग्रेजुएट हो गयी;! लेकिन ऐसी कौन-सी बड़ी नौकरी तुझे मिली जाती है। ज्यादा-से-ज्यादा सौ की। तेरे पापा पाँच सौ लाते थे, तब गुज़र होता था, और चार पैसे हाथ में रह गये। विलियम की आमदनी चार-पाँच सौ से कम नहीं है। फिर यह अच्छा भी तो नहीं लगता, कि औरत अपनी गुज़र-बसर के लिए नौकरी करे। मैं इसे पसन्द नहीं करती। मुझे सौ रुपये की जगह मिलती थी, लेकिन तेरे पापा कभी राज़ी न हुए।
जेनी – मैं तो आप से कह चुकी, मैं शादी नहीं करना चाहती।
मिसेज गार्डन – आख़िर क्यो, वही तो पूछती हूँ।
जेनी – इसलिए कि मैं किसी मर्द की गुलामी पसन्द नहीं करती।
मिसेज गार्डन – शादी करना गुलामी है? वे सभी औरतें जो शादी करती हैं, गुलाम है?
जेनी – गुलाम नहीं तो और क्या है। रानियाँ है, वह भी गुलाम है। मजदूरिने हैं, वह भी गुलाम हैं। मर्द की दुनिया वह है, जहाँ नाम है, धन है, सम्मान है। स्त्री की दुनिया वह, जहाँ पिसना और घुलना और कुढ़ना है। हर काम में औरत को मर्द की जवाबदेही करनी पड़ती है। अगर उसने चार पैसे ज्यादा खर्च कर दिये, तो मर्द की त्योरियाँ चढ़ गयीं। मर्द के नाश्ते में ज़रा देर हो गयी, तो औरत के सिर आफ़त आ गयी। अगर वह बगैर मर्द से पूछे कहीं चली गयी, तो मर्द उसके खून का प्यासा हो गया। अगर किसी मर्द से हँसकर बोली, तो फिर समझ लो कि उसकी कुशल नहीं। दिखाने को तो मर्द स्त्री की बड़ी इज़्ज़त करता है, मोटर पर अच्छी जगह स्त्री की है, सलाम पहले मर्द करता है, स्त्री का ओवरकोट पुरुष सँभालता है, स्त्री का हाथ पकड़कर गाड़ी से उतारता है, पहले स्त्री को बिठाकर आप बैठता है; लेकिन यह सब दिखावे का शिष्टाचार है। पुरुष दिल में खूब समझता है कि उसने स्त्री की वह चीज़ छीन ली जिसकी पूर्ति में वह जितनी ख़ातिरदारी करे, वह थोड़ी है। वह चीज़ स्त्री की आज़ादी है।
मिसेज गार्डन – तेरे विचार बड़े विचित्र है जेनी!
जेनी – विचित्र नहीं, यथार्थ है। हम अपने टामी की कितनी ख़ातिर करते है। उसे ताँगे पर साथ बैठाते है, गोद में उठाते है, उसका मुंह चूमते है। गले से लगाते है, उसे साबुन से नहलाते हैं; लेकिन क्या बराबर हमारे मन में यह भाव नहीं रहता, कि वह हमारा कुत्ता है? उसने ज़रा भी कोई काम हमारी इच्छा के विरुद्ध किया और हमने उस पर हंटर जमाया। पुरुष विवाह करके स्त्री का स्वामी हो जाता है। स्त्री विवाह करके पुरुष की लौंड़ी हो जाती है। अगर वह पुरुष की खुशामद करती रहे, उसके इशारों पर नाचती रहे, तो उसके लिए रुपये है, गहने हैं, रेशमी कपड़े हैं, उस पर जान छिड़की जाती है, हृदय न्योछावर किया जाता है; लेकिन स्त्री न ज़रा भी स्वेच्छा का परिचय दिया, ज़रा भी आत्मसम्मान प्रकट किया, फिर वह त्याज्य हैं, कुलटा है। पुरुष उसे क्षमा नहीं कर सकता। पुरुष कितना ही दुराचारी हो, स्त्री जबान नहीं हिला सकती। उसका धर्म है, पुरुष को अपना खुदा समझे। मैं यह नहीं बरदाश्त कर सकती।
मिसेज गार्डन – मैं समझती हूँ, तेरी बातों में कुछ सच्चाई है; लेकिन गुज़ारे की तो कोई फ़िक्र करनी ही पड़ेगी।
जेनी – तो क्या तुम समझती हो, मैं निश्चिंत हूँ, पर यह न समझना। मैं सौ-पचास की टीचरी करके लड़कियों को ग्रामर रटाऊँगी। अगर तक़दीर ने मदद की तो मैं दिखा दूंगी कि मैं कितना कमा सकती हूँ; विलियम कभी उसका स्वप्न भी नहीं देख सकता।
(मिस उमा आती है। बड़ी रूपवती है। माँग का सिन्दूर और भाल-तिलक बतला रहा है कि वह विवाहित है। उनकी गोल कलाई पर जड़ाऊ कंगन है, गले में जड़ाऊ हार, मूल्यवान बनारसी साड़ी पहने हुए, बहुत प्रसन्न बदन, मानो संसार में वसन्त-ही-वसन्त, फूल-ही-फूल हैं)
जेनी – (कुर्सी पर बैठे-बैठे) मैं पहले कुरसी से उठकर तुम्हारा सत्कार करती थी, लेकिन आज न उठूगी। इसलिए कि तुम मेरी निगाह में वह नहीं रहीं, जो पहले थीं।
उमा – क्यों? क्या मैं कुछ और हो गयी हूँ?
जेनी – बेशक! पहले तुम स्वतन्त्र कुमारी थीं। अब तुम एक पुरुष की दासी हो।
उमा – (मुस्कराकर) लेकिन तुम्हारी सहेली तो हूँ। तुम्हारे साथ पढ़ी तो हूँ, तुम्हारे साथ खेली तो हूँ। यदि मैं अपने पद से गिर गयी हूँ, तब तो तुम्हें मेरा और सत्कार करना चाहिए जिसमें मुझे दुःख न हो।
जेनी – अगर तुम्हारे ऊपर कोई विपत्ति आ गयी होती – ईश्वर न करे – तो मैं तुम्हारे पैरों-तले आँखें बिछाती; लेकिन तुमने । जान-बूझकर अपने पैरों में बेड़ियाँ डाली है, अपनी स्वाधीनता को, अपनी आत्मा को, सोने और रेशम पर बेचा है।
उमा – (हँसकर) अच्छा, ईमान से कहना, मैं पहले से ज़्यादा खूबसूरत नहीं मालूम हो रही हूँ?
जेनी – अपने स्वामी की आँखों में मालूम होती होगी। मेरी आँखों में तो तुम्हारा रूप-लावण्य इस सोने और रेशम के नीचे दबा-सा मालूम होता है।
उमा – देखो यह कंगन, कितना बारीक़ काम है!
जेनी – (मुँह फेरकर) गुलामी की हथकड़ी है।
उमा – यह हार देखो, हीरे जड़े हैं।
जेनी – गुलामी का तौक़ है।
उमा – (कुछ चिढ़कर) जिसे तुम गुलामी की हथकड़ी और गुलामी की तौक़ कहती हो, उसे मैं व्रत और कर्तव्य और आत्मसमर्पण का चिह्न समझती हूँ।
जेनी – यह व्रत यह कर्तव्य और यह आत्म-समर्पण एकतरफा क्यों? तुम्हारे ही लिए क्यों इन चिह्नों की ज़रूरत है? तुम्हारे पति के लिए क्यों ज़रूरी नहीं? जहाँ तक मेरा अनुभव है, उसके हाथों में न चूड़ियाँ हैं, न कंगन है, न गले में हार है, न माथे पर सिन्दूर का टीका है। यह क्यों? तुम्हें अपने व्रत पर स्थिर रखने के लिए बन्धन चाहिए, उसे बन्धन की ज़रूरत नहीं?
(उमा निरुत्तर हो जाती हो जाती है और उपालंभ की दृष्टि से मिसेज गार्डन की ओर देखती है)
उमा – सुनती है मामा, आप इनकी बातें? मिसेज – मैं इसे कुबुद्धि कहती हूँ। निरी मूर्खता।
जेनी – (विजय के भाव से) जवाब दो न। क्यों तुम्हारे पति ने इन बन्धनों को स्वीकार नहीं किया? क्यों तुम्हारे लिए इन बन्धनों को लाज़िम समझा गया? कर्तव्य और प्रेम उसके लिए भी उतना ही आवश्यक है, जितना तुम्हारे लिए। तुम्हें अपने कर्तव्य की याद दिखाते रहने के लिए निशानियों की ज़रूरत है, उसे क्यों नहीं? इसका कारण इसके सिवा और क्या हो सकता है, कि तुम गुलाम हो, वह आज़ाद है।
उमा – (एक जवाब सूझता है) पुरुष अपने कर्तव्य की ओर से आँखें बन्द कर ले, तो क्या स्त्री भी बन्द कर ले? अगर पुरुष अपने व्रत का पालन न करे, अपनी आत्मा को भूल जाय तो क्या स्त्री भी भूल जाय? मेरा विचार है कि स्त्री परिवार का मुख्य अंग है, इसलिए उसे बन्धनों की ज़्यादा ज़रूरत है। उसी तरह जैसे शूद्रों के लिए किसी निशानी की ज़रूरत नहीं, पर द्विजों के लिए यज्ञोपवीत अनिवार्य है।
जेनी – लचर दलील है। असली बात यह है कि आदि में स्त्री पुरुष की सम्पत्ति समझी जाती थी, उसी तरह जैसे पशु, अनाज या घर। जैसे आज जायदाद पर डाके पड़ते हैं, चोरियाँ होती है, उसी तरह उस समय भी होता था। लड़की बहुधा सबसे बहुमूल्य सम्पत्ति समझी जाती थी। इसलिए ज्यों ही वह सयानी हो जाती थी, उस पर डाके पड़ने लगते थे पुरुष अपने सूरमाओं को लेकर अस्त्र-शस्त्र के साथ, लड़की के ऊपर छापा मारता था। दोनों दलों में खूब लड़ाई होती थी,खूब रक्तपात होता था। लुटेरे विजय पाते, तो लड़की को ले भागते और उसके साथ घर में जो चल सम्पत्ति मिल जाती, उसे भी उठा ले जाते। लड़की वाले रोपीटकर रह जाते थे। कन्या विजेताओं के घर में कैद कर दी जाती थी। उसके हाथों में हथकड़ियाँ डाल दी जाती थीं, पैरों में बेड़ियाँ, गले में तौक़ और उस संग्राम के स्मृति-स्वरूप उसके माथे पर रक्त का टीका लगा दिया जाता होगा, जिससे कन्या समझती रहे कि उसके कभी भागने का प्रयत्न किया, तो उसकी भी वही दशा होगी जो उसके घरवालों की हुई है। कन्या को कभी घरवालों की याद न आये, वह इन नये स्वामियों को ही अपना सर्वस्व समझने लगे, इसलिए कन्या को उपदेश दिया जाता था कि पति ही तेरी स्वामी है, तेरा देवता है, उसको प्रसन्न रखकर ही तू स्वर्ग में जाएगी। यह है इन निशानियों का तथ्य। आज उन पाशविक प्रथाओं का रूप कुछ बदल गया है अवश्य; किन्तु मूलाधार वहीं है। नयी संस्कृति ने कुछ लेप-थोप की है; लेकिन पुरुषों की मनोवृत्ति अब भी वही है और समाज-संस्था का आचार भी वही है। बिलकुल वही।
मिसेज गार्डन – यह तुम्हारे मस्तिष्क की उपज है या तुमने कहीं पढ़ा है?
जेनी – यह एक बड़े फ्रांसीसी तत्त्ववेत्ता के विचार हैं।
मिसेज गार्डन – तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी होगी। स्त्री-पुरुष दोनों अपनी रुचि के अनुसार अपना-अपना बनाव-सिंगार करते है। स्त्री पुरुष को आकर्षित करना चाहती है, पुरुष स्त्री को। पुरुष में पशुबल अधिक है, स्त्री में बुद्धिबल अधिक है, इसलिए बाहर की कड़ी मेहनत-मजूरी, लड़ाई-दंगा मर्द के हिस्से पड़ा, भीतर का काम औरत के हिस्से आया। मैंने तो बड़े-बड़े राजाओं को हीरों के हार और मोतियों के कंगन पहने देखा है। फिर देस-देस की रिवाज़ अलग-अलग है। भूटान में तो स्त्री-पुरुष एक-से जान पड़ते हैं। पता नहीं चलता, कौन स्त्री है, कौन पुरुष। मज़दूर औरतें भी बहुत कम गहने पहनती है योरप में साधारणतः स्त्रियाँ गहने पहनती ही नहीं है। केवल ऊँचे कुलवाली महिलाएँ दो-एक चीज़ पहन लेती है। भारत में पोर-पोर गहनों से लदा होता है। अपने-अपने देश की प्रथा है।
जेनी – आप इसे स्वीकार नहीं करतीं कि पुरुष स्त्री पर शासन करता है?
मिसेज गार्डन – नहीं। अगर ऐसे पुरुष हैं जो स्त्री पर शासन करते हैं, तो ऐसी स्त्रियाँ भी है जो पुरुष पर शासन करती है। मैं खुद तुम्हारे पापा पर शासन करती थी। वह मुझसे पूछे बिना किसी से मिलने भी न जाते थे। उन्हें लौटने में एक मिनट की भी देर हो जाती थी, तो मैं उनकी बुरी तरह ख़बर लेती थी। यह मैं मान लँगी कि पुरुष में यह प्रवृत्ति अधिक होती है लेकिन इसका कारण यही है कि पुरुष ने पशुबल के साथ बुद्धिबल में उन्नति की, हमने आलस्य और विलास में पड़कर हर तरह से अपनी मिट्टी ख़राब कर ली। समाज की यह जो वर्तमान अधोगति है, इसकी जिम्मेदारी स्त्री-पुरुष दोनों ही पर जाती है। केवल पुरुषों को इलजाम देना अन्याय है।
जेनी – यह तो आप मानेंगी ही कि नब्बे फ़ीसदी पुरुष व्यभिचारी होते हैं। ऐसा कोई बिरला ही पुरुष संसार में होगा, जिसने स्त्री पर निगाह न डाली हो।
मिसेज गार्डन – अगर ऐसे दगाबाज़ मर्द है तो ऐसी दगाबाज़ औरतें भी कम नहीं है। हो सकता है, मरदों की संख्या अधिक हो; लेकिन इसका कारण यह नहीं है कि औरतें स्वभावतः विदुषी होती है; बल्कि उसे प्रकृति ने जकड़ रखा है। मैं तो मोटी बात यह जानती हूँ कि जो स्त्री-पुरुष सुख-शान्ति से ज़िन्दगी बसर करना चाहते है, वह जानते हैं कि पूर्ण विश्वास और प्रेम से ही यह सिद्धि हाथ आ सकती है। जो स्त्री-पुरुष वासना-तृप्ति के उपासक हैं, वह दोनों रोकर और झींककर ज़िन्दगी के दिन काटते हैं।
जेनी – आप तो मामा, आज मरदों की वकालत करने पर तुली हुई है। आपका यही निर्णय है कि पुरुष स्त्री को बराबर समझता है और उस पर किसी तरह का दबाव नहीं डालता?
मिसेज गार्डन – हाँ, जो पुरुष जीवन का सच्चा अर्थ समझता है, उसका यही व्यवहार होता है। सुशिक्षित जोड़ों में इसका विचार ही नहीं आने पाता कि कौन छोटा है, कौन बड़ा। स्त्री से कोई भूल हुई, पुरुष ने डाँटा। पुरुष से कोई ग़लती हुई, स्त्री ने गरदन नापी। दोनों हर हालत में सन्तुष्ट रहते हैं। मैं यह नहीं कहती कि ऐसा पुरुष सच्चा साधु हो जाता है और उसका मन किसी स्त्री पर चंचल नहीं होता, अथवा हरेक विवाहित स्त्री देवी होती है, लेकिन उन्हें अपने ऊपर निग्रह करना होता है, और कभी-कभी गुप्त प्रेम की आँच में जलकर मर जाता होता है। यदि मुझे अपने पति से अधिक रूपवान् पुरुष को देखकर दिल पर हाथ रखने का अधिकार है, तो मेरे पति को भी मुझसे अधिक रूपवती स्त्री को देखकर यह अधिकार समान रूप से प्राप्त है; लेकिन हम दोनों समझते हैं कि इस विश्वासघात से हमारे सुख-शान्ति में बाधा पड़ेगी। इसलिए ज़ब्त करते है। कुलीन और विचारशील स्त्रीपुरुषों में यह भावना आने ही नहीं पाती।
उमा – (प्रसन्न होकर) अब कह जेनी, मामा ने तुम्हारी ज़बान बन्द कर दी या नहीं?
जेनी – वाह! इन पुराने विचारों से मेरी ज़बान बन्द हो जाती, तो अब तक मेरी शादी विलियम से हो गयी होती। मेरा तो विचार है, जिन स्त्रियों में कोई व्यक्तित्व नहीं है, कोई उत्साह नहीं, आदर्श नहीं हैं, उन्हें विवाह कर लेना चाहिए। लेकिन जिनमें अपने विचार हैं, अपना व्यक्तित्व है, अपनी इच्छा है, जिन्हें कीर्ति और ख्याति की लालसा है, उन्हे अविवाहित रहना चाहिए। अपनी हस्ती को पति की हस्ती में डूबा देना, इतना बड़ा त्याग है, जो मैं नहीं कर सकती।
(मोटर का हार्न सुनाई देता है)
उमा – लो, यह महाशय आ पहुँचे। इनके मारे घर से निकलना मुश्किल है।
(मोटर द्वार पर आकर रुकती है और उमा का पति योगराज उतरकर अन्दर आता है। उमा दोनों महिलाओं का अपने पति से परिचय कराती है) योगराज - तुमने मुझसे क्यों न कहा, मिस गार्डन के पास जा रही हूँ, मैं भी तुम्हारे साथ आता।
उमा – तुमने भी तो अपने मित्रों से मेरा परिचय नहीं कराया। मैं क्यों कराती?
योगराज – मेरे मित्रों में शायद ही कोई ऐसा हो, जो तुम्हें देखकर मेरा शत्रु न हो जाता। मेरे विचार में तुम्हें अपनी सहेलियों से यह शिकायत न होगी।
उमा – आप अपने मित्रों की जिस चंचलता से डरते हैं, क्या आप उससे मुस्तसना हैं?
योगराज – था तो नहीं, लेकिन तुमने कर दिया।
(मुस्कराता है)
उमा – मेरी यह बहन कहती हैं, स्त्री विवाह करके पुरुष की गुलाम हो जाती है। क्या तुम मुझे अपना गुलाम समझते हो?
जेनी – (झेंपकर) यह इस बहस का अवसर नहीं उमा, आप हमारे मेहमान हैं। हमें आपका कुछ स्वागत करने दो। आपके लिए चाय बनाऊँ। (जेनी योगराज को सिर से पाँव तक अनुरक्त नेत्रों से देखकर आँखें झुका लेती है)
योगराज – जी नहीं, मैं चाय पी चुका हूँ, आप कष्ट न करें।
जेनी – उमा शायद डर रही है कि मैं चाय में कोई जादू कर दूंगी।
योगराज – मैं तो चाहता हूँ, आप मुझ पर जादू करें, उमा ने मुझ पर जो वशीकरण डाल रखा है, उससे जरा छुटकारा तो मिले।
जेनी --आप हैं बड़े भाग्यवान कि उमा जैसी स्त्री पाई।
योगराज – मैंने उस जन्म में कोई बड़ी तपस्या की थी।
उमा – तु दोनों मिलकर मुझे बनाओगे तो मैं चली जाऊँगी।
(जेनी की आँखें फिर योगराज से मिलती हैं। वह आँखें झुका लेता है। उमा जेनी को तीव्र नेत्रों से देखती हैं)
योगराज – (प्यानो देखकर) अच्छा, आपको प्यानो का भी शौक है? फिर तो मेरा जी चाहता है, यहाँ कुछ देर बैठकर संगीत का आनन्द उठाऊँ। क्यों मिस गार्डन, आप हमें निराश तो न करेंगी?
जेनी – आप तो तकल्लुफ की बातें करते है, बाबूजी, आइए जो कुछ कहिए सुनाऊँ।
(दोनों प्यानो वाली कोठरी में जाते हैं)
उमा – (अधीर होकर) भाई गाना-वाना सुनाने लगेगी, तो देर होगी। मैंने अम्माँ से कहा भी नहीं, चली आई। वह मुझ पर नाराज होने लगेंगी।
जेनी – (मुस्कराकर) तो तुम जाओ न। बाबूजी मेरी एक चीज सुनकर जायेंगे।
उमा – (खिसियाकर) मुझे ड्राइव करना नहीं आता।
जेनी – तो जरा देर बैठ जाओ न, अम्माँ मार न डालेंगी।
योगराज – नहीं मिस गार्डन, इस वक्त क्षमा कीजिए। यह दोष मुझ पर आ जायगा। फिर कभी।
(वह जेनी और मिसेज गार्डन से हाथ मिलता है। उमा भी दोनों से हाथ मिलाती है)
जेनी – कल आना उमा, और बाबूजी को लाना।
(उमा कोई जवाब नहीं देती। दोनों चले जाते हैं)
मिसेज गार्डन – बड़ा सुशील लड़का है।
जेनी – एक यह आदमी है एक आपका विलियम। सूरत से उजड्डपन बरसता है। चेहरे पर सौम्यता की परछाई तक नहीं।
मिसेज गार्डन – बेटी सभी आदमी एक-से नहीं होते। यह लोग कुलीन हैं। विलियम का बाप रेलवे गार्ड था। हाँ, उसने बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाई।
जेनी – और आप चाहती है कि मैं उस गँवार से विवाह कर लूँ।
मिसेज गार्डन – मेरे पास भी दस हजार देने को होते, तो मैं भी कोई ऐसा ही वर खोजती। जितना गुड़ डालोगी, उतना ही मीठा तो होगा।
जेनी – इसीलिए तो मैंने निश्चय कर लिया है, विवाह न करूँगी। तुमने देखा मामा उमा कितनी जली जाती थी।
मिसेज गार्डन – अभी नई मुहब्बत है न?
जेनी – देख लेना इन दोनों में बहुत दिन पटेगी नहीं। उमा अल्हड़ छोकरी है। योगराज रसिया है। महीने-दो-महीने में वह उसकी तरफ से ऊब उठेगी।
मिसेज गार्डन – नहीं जेनी, देख लेना दोनों जीवन-पर्यन्त सुखी रहेंगे।
जेनी – मैं तो कभी पसन्द न करूँ कि कोई मेरे गले में रस्सी डाले फिराया करे।
(मिसेज गार्डन चली जाती है। जेनी प्यानो पर बैठकर गाने लगती है – कभी हमसे तुमसे भी प्यार था!) (पटाक्षेप)
दूसरा दृश्य
(वही मकान, अन्दर का बावर्चीखाना। विलियम एक बेंत के मोढ़े पर बावर्चीखाने के द्वार पर बैठा हुआ है। मिसेज गार्डन पतीली में कुछ पका रहा है। विलियम बड़ा भीमकाय, गठीला, पक्के रंग का आदमी है, बड़ी मूंछे, चौड़ी छाती, फौजी जवान-सा मालूम होता है।)
मिसेज गार्डन – तुमने कभी प्रोपोज भी नहीं किया, या यों ही समझ लिया, कि वह इंकार कर देगी?
विलियम – मेरी हिम्मत ही जवाब दे देती है। औरतों के सम्मुख मर्द इतना मूक होता जाता है, इसका अनुभव मुझे अब हुआ।
मिसेज गार्डन – कायर कहो। ऐसे कायर प्राणी कभी फलीभूत नहीं हो सकते। तुम ताकते ही रह जाओगे और कोई दूसरा आदमी आ कूदेगा।
विलियम – इसकी तो मुझे चिन्ता नहीं मिसेज गार्डन, उसका और अपना खून एक कर दूंगा। मैं चाहे जेनी को न पा सकूँ पर कोई दूसरा भी उसे मेरे जीते-जी नहीं पा सकता।
मिसेज गार्डन – फिर वही उजड्डपन की बात! अरे तो प्रोपोज क्यों नहीं करता भई?
विलियम – कैसे प्रोपोज करूँ, यही तो मुझे नहीं आता। कई किताबें देखीं, मगर कुछ साफ न खुला।
मिसेज गार्डन – उसे कभी पार्क-वार्क में ले जाओ और वहाँ एकान्त में प्रोपोज करो और मैं क्या बताऊँ?
विलियम – वह जब मेरे साथ कहीं जाय भी। मुझे देखते ही तो उसके चेहरे पर उदासी छा जाती है। चाहती है कि मैं उठकर चला जाऊँ। कभी खातिर से बैठाए, कुछ बातचीत करे, त तो मेरा दिल बढ़े।
मिसेज गार्डन – तो क्या तुम साल-भर से यों ही रास्ता नापने आते हो?
विलियम – मेरी पहुँच तो आप ही तक हैं।
मिसेज गार्डन – तो क्यो मुझसे शादी करेगा? कैसा युवक है! होशियार मर्द एक घंटे में औरत को रास कर लेता है, तुम्हें सालभर दौड़ते हो गया और अभी 'क' 'ख' की नौबत भी नहीं आई। कुछ तुम में बूता हो तो मैं भी जोर लगाऊँ। बछड़ा तो खूटे ही के बल पर कूदेगा। आखिर तुमने उसे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अब तक क्या-क्या कार्रवाई की?
विलियम – मैंने अंग्रेजी बोलने का अच्छा अभ्यास कर लिया है।
मिसेज गार्डन – खूब तो क्या आप अंग्रेजी में प्रोपोज करेंगे, या वह तुम्हारे अंग्रेजी भाषण का प्रवाह देखकर तुम्हारे ऊपर लट्ट हो जायगी?
विलियम – मैंने गाना भी सीख लिया है।
मिसेज गार्डन – यह तुमने बहुत अच्छा किया। वह गाने में कुशल है। सम्भव है रुचि की समानता आगे चलकर मैत्री का रूप धारण कर ले। प्यानो बजा लेते हो।
विलियम - जी हाँ, अच्छी तरह।
मिसेज गार्डन – अभी तो जेनी के आने में देर है। अपनी सहेली से मिलने गई है। चलो देखू तुम कैसी प्यानो बजा लेते हो?
मिसेज गार्डन – लाहौल-विला-कूवत! यही आपका गाना है! खुदा के लिए कहीं उसके सामने न बजाने लगना, नहीं उसे तुम्हारी सूरत से घृणा हो जाएगी।
विलियम – अभी तो सीख रहा हूँ मिसेज गार्डन, कुछ दिनों में देखिएगा!
मिसेज गार्डन – जाओ भी, चले हो गाना सीखने। अच्छा और क्या सीखा?
विलियम – टेनिस खेलने लगा हूँ।
मिसेज गार्डन – हाँ, इसकी बड़ी जरूरत थी। खूब अच्छी तरह खेल लेते हो?
विलियम – जी हाँ, कहिए तो दिखाऊँ?
मिसेज गार्डन – टेनिस भी तो प्यानो ही की तरह नहीं सीखा है?
विलियम – नहीं जी, खूब खेलता हूँ। अच्छे-अच्छों के छक्के छुड़ा दिये हैं।
मिसेज गार्डन – सच! अच्छा कमरे में चलकर दिखाओ तो जरा अपना खेल।
(दोनों कमरे में आते हैं। मिसेज गार्डन खूटी पर से दोनों रैकेट उतार लेती है। दोनों एक-एक रैकेट लेकर आमने-सामने खड़े हो जाते है। विलियम गेंद सर्व करता है। मिसेज गार्डन गेंद को उसकी ओर लौटाती है। वह गेंद की तरफ लपकता है और जोर से आकर लुढ़क जाता है। फिर सँभलकर खड़ा होता है)
मिसेज गार्डन – यही आपका खेल है! तुम इसमे भी फेल हो गए। खुदा के लिए कहीं जेनी के सामने न खेलना, नहीं मुफ्त में भद हो।
विलियम – मैं गिरा थोड़े ही थी। जोर सो दौड़ा तो जरा पाँव फिसल गया।
मिसेज गार्डन – अच्छा, टेनिस-सूट तो बनवा लिया है?
विलियम – यह तो मुझसे किसी ने बताया ही नहीं!
मिसेज गार्डन – शाबाश! तो यहाँ लांग बूट पहनकर टेनिस खेलते हो।
विलियम – बूट पहनकर खूब दौड़ते बनता है।
मिसेज गार्डन – वही हो और क्या। मैं पूछती हूँ, आखिर तुम किस दुनिया में रहते हो? पहले टेनिस सूट बनवाओ, तब टेनिस खेलो। यह नहीं कि यह लक्कड़तोड़ जूते और यह नीचा कोट पहनकर टेनिस खेलने लगे। तुम्हारी हँसी उड़ती होगी और क्या?
विलियम – मुझसे तो लेडी डगलस ने यही कहा कि फौजी आदमियों के लिए टेनिस सूट की जरूरत नहीं।
मिसेज गार्डन – अच्छा, अब आदमी बनना सीखो। यह जंगल-सी मूंछे साफ कराओ। वह जमाना दूसरा था, जब औरत मर्द की मूंछे देखकर खुश होती थी। मुझे ही ले लो। मुंड़ी हुई मूंछे मुझे एक आँख नहीं भाती; लेकिन अब जमाना बदल गया है। अब स्त्री चाहती है कि मर्द का चेहरा साफ हो। बालों का चिह्न तक न हो।
विलियम – तो कल ही लीजिए। इसमे कौन छप्पन टके का खर्च है।
मिसेज गार्डन – अच्छा कुछ नाचना-वाचना भी सीखा है? जेनी बहुत अच्छा नाचती है।
विलियम - जी हाँ, नाचना तो पहले ही से आता है।
मिसेज गार्डन – अच्छा जरा दिखाओ।
(विलियम वहीं बन्दरों की भाँति उचकने लगता है। नाचते समय अपने स्थूल शरीर को सँभालने में उसकी मुखाकृति विकृत हो जाती है कि मिसेज गार्डन हँसते-हँसते लोट जाती है)
मिसेज गार्डन – रहने भी दो। यह आपका नाच है, जैसे बनैला सुअर किलोल करे। भई यह बेल मुँढ़ चढ़ने की नहीं। अभी तुममें बड़ी-बड़ी त्रुटियाँ हैं। पहले इनको दूर करो! तब हिम्मत करके एक दिन प्रोपोज करो।
विलियम – त्रुटियाँ तो मैं पूरी कर लूँगा, लेकिन प्रोपोज करना टेढ़ी खीर है।
मिसेज गार्डन – मैं एक बात कहूँ - जरा-सी शराब पी लेना।
विलियम – ऐसा न हो, बहकने लगूं?
मिसेज गार्डन – अजी नहीं, थोड़ी-सी पीना और बढ़िया किस्म की, जिसमें मुँह से सुगंध आवे! और देखो, गँवारों की तरह बातचीत न किया करो। शिष्टाचार सीखो। पहनावा भी भले आदमियों-सा रखो। टाई और कॉलर रेशमी लो। कोट के बटन में एकाध गुलाब लगा लिया करो। यह मोटा-सोटा लेड़ियों के पसंद की चीज नहीं। हलकी-सी सोफियानी छड़ी लो। यह तुमने डिबिया-सी घड़ी और जंजीर लगा रखी है, इसे धता बताओ और सुनहरी घड़ी कलाई पर बाँधो। तुम्हारे घर में कितने नौकर है?
विलियम – नौकर! नौकरों की क्या जरूरत है? एक बूढ़ी दाई है, वह रोटी और गोश्त पका देती है – दोनों वक्त। सुबह को दो सेर दूध खुद दुहा लाता हूँ। कच्चा ही पी जाता हूँ। बुढ़िया बिस्तर डाल देती है। दफ्तर से आकर दो ढाई सौ सौ हाथ लेजिम के फेर लेता हूँ। खाना खाकर सो जाता हूँ।
मिसेज गार्डन – अगर तुम्हारी यह रहन-सहन है तो जेनी से हाथ धो रखो। वह मजदूर पति नहीं, जेंटिलमैन पति चाहती है।
विलियम – अब तो मुझे किसी ने कुछ बताया ही नहीं। अब आपने सलाह दी है, देखिए कितनी जल्द जेंटिलमैन बन जाता हूँ.
मिसेज गार्डन – कुछ न हो तो एक बेयरा, एक खानसामाँ, और एक अर्दली तो होना ही चाहिए। बावरची अलग। एक मेहतर, एक धोबी और एक बागवान भी रख लो। और कैसे मालूम होगा कि तुम साहब हो। अभी मोटर न हो तो कोई हरज नहीं, लेकिन दो साल में उसका प्रबन्ध भी करना पड़ेगा। घर में कुछ तस्वीरें
विलियम – जी हाँ, अखबारों में जो अच्छी तस्वीर नजर आ जाती है। प्रेम करा लेता हूँ।
मिसेज गार्डन – शाबाश? तब तो तुम आर्ट के बड़े रसिक हो। अच्छा कभी सिनेमा देखने जाते हो?
विलियम – वहाँ जाकर नींद कौन खराब करे मिसेज गार्डन? मुझे तो उसमे कुछ मजा नहीं आता।
मिसेज गार्डन – तो तुम निरे गँवार हो। खाना, काम करना और सोना जानते हो। सभ्यता तो तुम्हें छू नहीं गई... ।
(जेनी की आहट मिलती है। विलियम पिछवाड़े के द्वार से बदहवास भागता है!)
जेनी – आज उमा और उसका पति विदा हो गये मामा! उमा बहुत रोती थी। मेरे गले लिपटकर रोने लगी। मुझे भी रोना आ गया। अब बेचारी न जाने कब आएगी!
मिसेज गार्डन – इन लोगों में विदाई के समय रोने का बुरा रिवाज है।
जेनी – क्या जाने मामा! मुझे तो खुद रोना आ गया। मैं तो तुम्हारे पास से जाने लगूं, तो मुझ जरूर रोना आये। योगराज एक सिनेमा कम्पनी का डायरेक्टर है मामा! पंद्रह सौ वेतन पाता है।
मिसेज गार्डन – अच्छा! मगर अभी उम्र तो कुछ नहीं है। अपनीअपनी तकदीर है।
जेनी – अमेरिका और इग्लैंड हो आये हैं मामा! अमेरिका में एक कम्पनी के डायरेक्टर रहे। कितनी ही युवतियाँ वहाँ उनसे शादी करने पर तुली हुई थीं। कितनी ही तो लाखों की सम्पति उन्हें दे रही थीं, लेकिन उनकी मँगनी पहले ही उमा से हो गई थी। सबको सूखा जवाब दिया। वहाँ होते तो अब तक उन्हें चार-पाँच हजार मिलते होते। इन फन में उन्हें कमाल है। उमा है बड़ी नसीबों वाली। मुझे उन्होंने अपनी कम्पनी मे बुलाया है। पहले एक हजार देंगे।
मिसेज गार्डन – (बेटी को गले लगाकर) सच!
जेनी – हाँ मामा! वह तो मुझे अपने साथ ले चलने पर जोर दे रहे थे। मैंने कहा, अभी मुझे कुछ तैयारी करने है। मुझे पाँच सौ का चैक तैयारियों के लिए दे गए।
मिसेज गार्डन – खुदा का लाख-लाख शुक्र है कि उसने आड़े वक्त में हमारी मदद की। बड़ी शरीफ आदमी मालूम होता है।
जेनी – (कुछ शरमाते हुए) अगर उमा मेरी सहेली न होती और मुझसे इतना प्रेम न करती होती, तो एक बार मैं अपने भाग्य की परीक्षा करती।
मिसेज गार्डन – क्या कहती है जेनी! विवाहित पुरुष के साथ?
जेनी – शादी-विवाह बच्चों का खेल है, मामा! यह केवल स्त्री और पुरुष के मन का समझौता है। इसमें धर्म को घसीटना मूर्खता है। मैं रूप-रंग में उमा जैसी नहीं! लेकिन उन्हें मैं जितना आकर्षित करती हूँ, उमा नहीं कर सकती। काश विवाह के पहले इनसे मेरा परिचय हो गया होता! मेरा गाना सुनकर मस्त हो गए। और तुमसे क्या कहूँ? खेद यही है, कि उमा के पति हैं और उमा इतनी निष्कपट और सरल है कि मुझे उस पर दया आती है। वह तो चाहती है कि उन्हें किसी औरत की हवा भी न लगे।
मिसेज गार्डन – (चिंता-भाव से) अब तेरे मन की यह दशा है जेनी, तो मैं तेरा उस कम्पनी में जाना उचित नहीं समझती।
जेनी – तुम भी मामा, मुझे छोकरी समझती हो। मैं योगराज को दिल से चाहती हूँ, लेकिन क्या मजाल कि मेरे मुँह से एक शब्द भी निकले, या इशारों से भी इसका आभास मिले। मैं न इतनी कृतघ्न हूँ औ न इतनी मदमाती।
मिसेज गार्डन – खुदा तेरे इरादों को पाक रखे बेटी! यही सज्जनों का धन है। खुदा ने चाहा, तो तुझे इससे अच्छा आदमी मिल जाएगा। चलो खाना तैयार है।
(दोनों खाना खाने जाती है)
(पटाक्षेप)
तीसरा दृश्य
(वर्षा काल का एक प्रभात। बादल घिरे हुए हैं। एक शानदार बंगला। दरवाजों पर जाली लोट के परदे पड़े हुए हैं! उमा एक कमरे में पलंग पर पड़ी है। एक औरत उसके सिर में तेल डाल रही है। उमा का मुख पीला पड़ गया है। देह सूख गई है। कमरे के पीछे की तरफ दो खिड़कियाँ हैं जो बाग में खुलती हैं।
उमा – (आईने की ओर देखकर) यौवन इतना अस्थिर है, इसकी मैंने कल्पना भी न की थी। मानो एक स्वप्न था कि आँख खुलते ही गायब हो गया! मगर कितना मधुर स्वप्न था! मैं स्वर्ग की अप्सरा की भाँति विमान पर बैठी आकाश में विहार करती थी। अब वह न वह विमान है, न स्वर्ग। मैं अपनी सारी निधि खोकर दया की भिक्षा पर पड़ी हुई हूँ। क्यों चम्पा, तू भी कुछ देखती है बाबूजी के स्वभाव में कितना परिवर्तन हो गया है। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि अब उन्हें मेरे समीप बैठने में आनन्द नहीं आता।
चम्पा – नहीं बहूजी, ऐसा न कहें। बाबूजी को मैंने कई बार आपके सिरहाने खड़े रोते देखा है। मुझे देखते ही उन्होंने रूमाल से आँखें छिपा ली और बाहर चले गए। आप वहाँ लेटी रहती हैं और वह दबे पाँव कमरे के द्वार पर टहलते रहते हैं। शायद उन्हें शंका होती है कि उनके आने से आपको कष्ट होगा।
उमा – (अविश्वास से देखकर) मुझे उनके आने से कष्ट होगा! यह उनका प्रेम है, जो मुझे जिन्दा रखे हुए है चम्पा! वही ज्योति मुझे जीवन प्रदान कर रही है। नहीं अब तक यह दीपक कब का बुझ गया होता।
(लेडी डाक्टर के साथ योगराज कमरे में आता है और उसे कुरसी पर बैठाकर बाहर चला जाता है)
लेडी डाक्टर – आज तो आपकी तबियत अच्छी मालूम होती
उमा – होगी! मुझे तो कोई फर्क नहीं मालूम होता।
लेडी डाक्टर – रात को नींद आई थी?
उमा – जी नहीं। पलक तक नहीं झपकी।
लेडी डाक्टर – मैंने तो आपसे पहले ही कहा था, कुछ दिनों के लिये पहाड़ पर चली जाइए। आप राजी न हुई। कम-से-कम सुबह को हवा खाने तो चली जाया करो।
उमा – इच्छा ही नहीं होती मेम साहब! सोचती हूँ, जब मरना ही है तो क्या छः महीने पहले और क्या छः महीने पीछे।
लेडी डाक्टर -नहीं-नहीं, तुम बहुत जल्दी अच्छी हो जाओगी, उमा देवी! अगर तुम पहाड़ों पर चली जाओ, तो एक महीने में चंगी हो जाओगी। मैं आज बाबूजी से कहती हूँ, तुम्हें कल ही भेज दें।
उमा – आप मुझे अकेले जाने को कहती हैं। मैं अकेली नहीं रह सकती।
लेडी डाक्टर –नहीं, अब मैं अकेली जाने को न कहूँगी। बाबूजी तुम्हारे साथ जाएँगे।
उमा – (प्रसन्न होकर) हाँ! तह मुझे जाने में कोई इंकार नहीं है।
(लेडी डाक्टर थर्मामीटर लगाकर ज्वर देखती है और नुस्खा लिखकर चली जाती है। द्वार पर योगराज खड़े हैं।)
लेडी डाक्टर – इनकी हालत खराब होती जाती है। आप इन्हें पहाड़ पर ले जाएँ। मैंने पहले इस पर ज्यादा जोर न दिया था। मैंने समझा था, दवाओं से काम चल जायगा! लेकिन अब मालूम होता है, पहाड़ों पर जरूर ले जाना पड़ेगा।
योगराज – मैं कल ही चला जाऊँगा।
(दोनों योगराज के कमरे में आकर बैठते हैं)
लेडी डाक्टर – हाँ जाइए! मगर आपने किसी तरह का कुपथ्य किया, तो आपको इनसे हाथ धोना पड़ेगा। अब मैं साफ-साफ कहती हूँ, आपके ही कारण इनकी यह दशा हुई। सालभर में दो गर्भपात और तीसरा गर्भ! एक कमसिन, कोमल प्रकृति की बालिका कितना अत्याचार सह सकती है! आप शिक्षित हैं, दुनिया देख चुके है, आपको विवाह करने के पहले इस विषय का ज्ञान प्राप्त कर लेना चाहिए था। पहले गर्भपात के बाद आपको कम-से-कम सालभर के लिए उन्हें मैके भेज देना चाहिए था। इनसे पृथक् रहना जरूरी थी, पर आपने जरा भी परवाह न की। जिस वक्त उमादेवी आई थीं, मैंने उन्हें देखा था। खिले हुए गुलाब का-सा चेहरा था। एक साल के अन्दर उनकी यह दशा हो गई, कि देह में रुधिर का नाम नहीं। इसके जिम्मेदार आप है।
योगराज – लेडी विलसन, ईश्वर के लिए मुझे क्षमा कीजिए। मैं आपसे कसम खाकर कहता हूँ, कि मुझे कुछ न मालूम था।
लेडी डाक्टर – तो यह किसका दोष है? अगर कोई आदमी तैरना न जानने पर भी दरिया में कूदे, तो यह किसका दोष है? जिसने । घोड़े पर सवारी करना न सीखा हो, उसे क्या अधिकार है कि वह घोड़े दौड़ावे? उमादेवी बालिका थी। अपने कर्तव्य का उसे ज्ञान न था। इस विषय में न उसने कुछ पढ़ा, न किसी से बात-चीत की। वह तो इतना ही जानती थी कि आप उसके स्वामी है, आपकी इच्छाओं के आगे सिर झुकाना उसका कर्तव्य है। उसे क्या मालूम था कि वह आपकी कामुकता के सामने सिर झुकाकर अपने लिए विष बो रही है। आपको भी चाहे अभी कुछ न मालूम होता हो, पर जल्द या देर में इसका असर अवश्य होगा। प्रकृति उन लोगों को कभी क्षमा नहीं करती, जो उसके नियमों को तोड़ते हैं।
(योगराज निस्पंद बैठा रहता है, मानो निप्राण हो। जब लेडी विलसन टोपी उठाकर जाने लगती हैं, तो वह चौंककर खड़ा हो जाता है)
योगराज – लेडी विलसन, ईश्वर के लिए इन्हें किसी तरह बचा लीजिए। मैं उम्र भी आपकी गुलामी करूँगा। आप मुझसे मेरा सब कुछ ले लें, केवल इन्हें बच्चा लें, मुझ पर दया कीजिए।
लेडी डाक्टर – लाला योगराज बच्चों की-सी बातें न करो। बचाना मेरे वश की बात नहीं हैं। मैं यथाशक्ति यत्न करूँगी, यह मेरा धर्म है। इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं कर सकती आपने भी वही नादानी की जो आपके दूसरे भाई किया करते हैं। स्त्री उनके लिए केवल विषय-भोग का यन्त्र है। वह स्त्री पर जितना अत्याचार चाहें कर सकते हैं। अगर स्त्री की ओर से कुछ । अरुचि हो, तो उसके शत्रु हो जायेंगे। वह बेचारी पति को प्रसन्न रखने के लिए सब कुछ झेलने को तैयार रहती है। सभी घरों में यही तमाशा देखती हूँ। अगर क्षय रोग न फैले, तो क्या हो; लेकिन अब भी घबराने की कोई बात नहीं। कल आप इन्हें पहाड़ पर ले जाइए और पूरा विश्राम दीजिए। नहीं तो आपको पछताना पड़ेगा।
(लेडी विलसन चलती जाती है। योगराज फिर उमा के पास आता है।
उमा – क्या कहती थीं लेडी विलसन? तुमसे अलग-अलग बातें कर रही थीं?
योगराज – कुछ नहीं, वह पहाड़ पर जाने की बातचीत थी। मैंने निश्चय किया है, कल हम लोग चल दें।
उमा – तो मेरे घर एक खत लिख दो। अम्माँ और दादा से मुलाकात तो कर लूँ। जेनी से भी मिलने को जी चाहता है। उसे भी एक खत लिख दो।
योगराज – इसमें कई दिन लग जायेंगे, उमा!
उमा – जैसी तुम्हारी इच्छा। कहीं मर गई तो उन लोगों को देख भी न सकूँगी!
(उसकी आँखों से आँसू की दो बूंदें गिर पड़ती हैं। योगराज झुककर उसके माथे का चुम्बन लेता है)
योगराज – (भर्राई हुई आवाज में) नहीं, नहीं, उमा! ईश्वर ने चाहा, तो तुम वहाँ से स्वस्थ होकर आओगी। वहाँ के जलवायु का जरूर असर होगा।
उमा – (चम्पा) अब रहने दे चम्पा! बाहर जा, फिर बुलाऊँ, तो आ जाना। (चम्पा चली जाती है।) मेरे पास आ जाओ राजा। कुछ याद है तुम्हें, आज हमारे विवाह की पहली वर्ष-गाँठ है। आज ही के दिन तुम मेरे घर गए थे। ज्योंही मुझे बारात आने की खबर मिली, मैं कोठे पर चढ़कर तुम्हें देखने गई थी। तुम नहीं देख सकते थे! पर मैंने तुम्हें खूब देखा था। कितनी जल्द एक साल बीत गया! आज उसका उत्सव मनाऊँगी। तुम भी दफ्तर न जाना। आज मेरा जी कुछ हलका मालूम होता है। तुम्हारे साथ खूब बातें करूँगी। तुम चले जाते हो, तो घर फाड़ खाने लगता है। एक छन भी तुम्हें नहीं देखती तो जी घबरा उठता है। आज मैं अपना कमरा फूलों से सजाऊँगी, लेकिन नहीं। फूलों को न तोड़ना (बाग की ओर देखकर) अपनी डालियों पर कितने सुन्दर लगते है। तोड़ने से मुरझा जाएँगे। (चम्पा को बुलाती है, वह आकर खड़ी हो जाती है) तुम्हें छोड़कर मुझे संसार में उससे प्रिय और कोई वस्तु नहीं है। उसकी याद बनाए रखना।
(योगराज मुँह फेरकर रुमाल आँखों पर रख लेता है और आँसुओं को रोकता हुआ कमरे के बाहर चला जाता है। एक मिनट तक वह सामने के अशोक-वृक्ष के नीचे खड़ा फूट-फूटकर रोता है। फिर उमा की पुकारना सुनकर द्वार की ओर चलता है! पर अश्रुविह्वल हो जाने के कारण द्वार पर रुक जाता है।)
(परदा)
चौथा दृश्य
(जेनी का मकान, संध्या का समय। विलियम टेनिस सूट पहने, मूंछे मुँडाए, एक रैकेट हाथ में लिए, नशे में चूर आता है।)
जेनी – आज तो तुमने नया रूप भरा है विलियम। यह किस गधे ने तुमसे कहा कि मूंछे मुँडा लो! बिल्कुल हिजड़ों से लगते हो। अपने सिर की कसम! यह तुम्हें क्या सनक सवार हुई। अच्छी खासी मूंछे थीं, मुडाकर सफाया कर दिया। जब जाकर आईने में अपनी सूरत देखो। एक तो माशा अल्लाह आप यों ही बड़े रूपवान हैं, उस पर मूंछे मुँडा लीं। हो निरे गावदी।
विलियम – (कुर्सी जेनी के पास खींचकर) आज का दिन बड़ा मुबारक है जेनी!
जेनी – (मुँह फेरकर) अरे तुमने तो शराब पी है। (नाक बन्द करके) नाक फटी जाती है। अलग बैठिए आप। आज तुम्हें हो क्या गया है?
विलियम – (जेनी की तरफ झुककर) आज मेरा दिमाग सातवें आसमान पर है जेनी। मैं विलियम नहीं हूँ अब। आज मैं उस जीवन का स्वप्न देख रहा हूँ, जिस पर फरिश्ते भी लट्ट होते हैं। आज मुझे यह वरदान मिलने वाला है। जिस पर तीनों लोक की निधि कुरबान है, आज मैं तुम्हें अपनी जीवन-सहचरी बनने की दावत देने आया हूँ। आज मैं प्रोपोज कर रहा हूँ। (कुर्सी से उतरकर जेनी के पैरों पर सिर रख देता है) देखो जेनी, खुदा के लिए इंकार मत करना। बोलो, मेरी प्रार्थना स्वीकार करती हो? तुम्हारे मुख के एक शब्द पर मेरे भाग्य का दारमदार है। अगर 'हाँ' कहती हो तो मुझसे बड़ा भाग्यशाली संसार में नहीं। 'न' कहती हो, तो मुझसे बड़ा अभागा संसार में न होगा। यदि तुम्हें मुड़ी हुई मूंछे पसंद नहीं हैं तो मैं फिर रख लूँगा। देखो, मैंने इसी दिन के लिए यह सूट बनवाया है, और मुझे यकीन है कि यह मुझे बुरा नहीं लगता।
जेनी – बिल्कुल नहीं, खुदा बुरी नजर से बचाए।
विलियम – (अकड़कर) मैं टेनिस बहुत अच्छा खेलने लगा हूँ।
जेनी – सच?
विलियम – अपने सिर की कसम! और प्यानो भी खूब बजा लेता हूँ।
जेनी – ओहो! अब तुम पूरे उस्ताद हो गए।
विलियम – नाचता ऐसा हूँ कि तुम देखो तो खुद नाचने लगो।
जेनी – वाह! अब तो कोई वजह नहीं हैं कि मैं तुमसे शादी न करूँ।
विलियम – वह मेरी जिन्दगी का सबसे मुबारक दिन होगा।
जेनी – अच्छा तो आओ हमारी-तुम्हारी शर्ते तै हो जायें।
विलियम – सब कुछ गिरजे में हो जायेगा, जेनी! ओ हो! जिस वक्त मैं तुम्हें आलटर की तरफ ले चलूँगा, तुम रेशमी गाउन पहने, हाथ में गुलदस्ता लिये मेरे कंधे पर सिर रखे चलोगी, वह कितनी मुबारक घड़ी होगी।
जेनी – मुझे उस स्वांग से नफरत है।
विलियम – (ताज्जुब से) तो फिर और कैसे शादी होगी जेनी!
जेनी – तुम मेरी शर्ते मान लो, बस शादी हो गई। इसकी क्या जरूरत कि गिरजे चलें, पादरी आए, मेहमान जमा हों, बाजे बजे, रस्में अदा हों। मुझे वह तमाशा पसंद नहीं। बोलो, मेरी शर्ते मंजूर करोगे।
विलियम – (निराश होकर) क्या शर्ते हैं जेनी?
जेनी – मेरी पहली शर्त यह होगी कि जिस दिन तुम्हें किसी दूसरी औरत से बातें करते देखू, उसी दिन तुम्हें घर से निकाल दूँगी।
विलियम – (प्रसन्न होकर) हाँ, मंजूर है जेनी?
जेनी – मेरी दूसरी शर्त यह होगी कि शादी के बाद भी मुझे अख्तियार होगा, जिससे चाहूँ हँसू-बोलूँ, जहाँ चाहे आऊँ-जाऊँ, जिससे चाहूँ प्रेम करूँ। बोलो मानते हो?
विलियम – यह कैसे मुमकिन है, जेनी! तुम हँसी करती हो। उस वक्त अगर कोई मर्द तुम्हारी तरफ आँखें भी उठाये, तो उसका खून पी जाऊँ, खोदकर जमीन में गाड़ दूँ, जीता निगल जाऊँ।
जेनी - तो फिर हमारी-तुम्हारी विधि नहीं मिलती।
विलियम – देखो जेनी, मेरी अभिलाषाओं का खून न करो। मेरी जिन्दगी बरबाद हो जाएगी।
जेनी – अच्छा बस, अब हँसी हो चुकी विलियम! तुमने कभी सोचा है, तुम क्यों शादी करना चाहते हो?
विलियम – (हक्का-बक्का होकर) आखिर और सब लोग क्यों शादी करते हैं?
जेनी – और सब लोग झक मारते हैं। मैं तुमसे पूछती हूँ, तुम क्यों शादी करना चाहते हो?
(विलियम सिर खुजलाता है और बगलें झाँकता है।
जेनी – तुम्हें नहीं मालूम। अच्छा मुझसे सुनो। तुम केवल इसलिए विवाह करना चाहते हो, कि तुम्हारा चित्त प्रसन्न करने के लिए तुम्हारे घर में एक खिलौना आ जाय।
विलियम – बस-बस यही बात है जेनी! तुम कितनी बुद्धिमती हो।
जेनी – तुम इसलिए विवाह करना चाहते हो कि जब मैं बढ़िया सूफियाना साड़ी पहनकर तुम्हारी मोटर साइकिल पर तुम्हारे साथ निकलँ, तो लोग हँस-हँसकर कहे, 'वह जा रहा भाग्य का धनी विलियम!'
विलियम – बस-बस यही बात है, जेनी! सचमुच तुम बड़ी बुद्धिमती हो।
जेनी – इसलिए कि जब तुम अपने अफसरों की दावत करो, तो मैं उनसे मीठी-मीठी बातें करके उनका दिल खुश करूँ और अफसर खुश होकर तुम्हारी तरक्की करें।
विलियम – बस-बस यही बात है जेनी।
जेनी – इसलिए कि तुम्हारे बच्चे हो जायँ और तुमने जो थोड़ीसी चाँदी जमा कर रखी है, उसके वारिस पैदा हो जायें।
विलियम – बस-बस जेनी! सुभान अल्लाह!
जेनी – तो मैंने इसके लिए बहुत अच्छी औरत तलाश कर रखी है। वह मुझसे कहीं अच्छी बीवी होगी तुम्हारी। तुम जैसे रखोगे वैसे रहेगी। जो चाहोगे वह करेगी। तुम्हारे घर में झाडू लगाएगी, तुम्हारा खाना बनाएगी, तुम्हारी बिस्तर लगाएगी।
विलियम – (प्रसन्न होकर) वह कौन है जेनी।
जेनी – मेरी मेहतरानी। गोरी, हँस-मुख, चंचल, बाँकी औरत है।
विलियम – तुम मेरा अपमान कर रही हो जेनी! मैं मेहतरानी से विवाह करूँगा? मैं भी खानदान का शरीफ हूँ।
जेनी – अच्छा! तो तुम ऐसी बीवी चाहते हो, जिससे तुम्हारे खानदान की इज्जत में बट्टा न लगे? विलियम ! तो तुम अभी शादी का अर्थ नहीं समझे।
विलियम – तो क्या मैं नालायक हूँ? मेरे पास ऐसे-ऐसे सर्टिफिकेट हैं कि देखो तो दंग रह जाओ।
जेनी – अच्छा! यह नई बात सुनी।
विलियम – मैं जो जरा चुपचाप रहता हूँ, तो तुमने समझ लिया बस यूँ ही है। अपने मुँह अपनी तारीफ नहीं करना चाहता। इसे मैं ओछापन समझता हूँ! लेकिन अब ऐसा अवसर आ पड़ा है, तो मुझे उन सनदों को पेश करना पड़ेगा। देखो। (जेब से कई चिट्ठियों का पुलिंदा निकालकर) यह मिसेज डगलस का खत है। उन्होंने मेरे टेनिस खेलने की तारीफ की है।
(जेनी खत पढ़ती है - It is hereby certified that Doby William handles his tennis ball just as a skillful wife handles her husband and consequently he should not be disqualified in matrimonial game on this account.)
जेनी – इस सनद ने तो मेरी जबान बन्द कर दी। तुम्हारे पेट में ऐसे-ऐसे गुण भरे हैं?
विलियम - जी हाँ, और आप क्या समझती हैं। देखती जाइए। यह मिस डासन का खत है।
- It is hereby certified that Doby William ha invented an altogether new dance, never heard of before, and nobody else can compete him there. It is an extra qualification in his favour for a matrimonial job.)
जेनी – तुमने ऐसे-ऐसे लाजवाब सर्टिफिकेट छिपा रखे हैं। तुम तो छिपे रुस्तम निकले।
विलियम – देखती जाइए। इस चिट्ठी में हेडमास्टर साहब ने मेरे चाल-चलन की प्रशंसा की है और यह सनद दिखाना तो मैं भूल ही गया। वह हिज़ हाइनेस गवर्नर ने मेरे फादर को दिया था। मुझे कोई मामूली आदमी न समझिए।
(मिसेज डगलस और मिस डासन दो औरतों के साथ आती नजर आती हैं। विलियम फौरन भाग खड़ा होता है)
मिस डासन – मैंने कहा चलूँ विलियम का तमाशा देखती जाऊँ। आज तुम्हें प्रोपोज करने आया था। मेरे सिर हो गया कि मुझे एक सर्टिफिकेट लिख दो। बताओ क्या लिखती।
मिसेज डगलस – निरा अहमक है। मुझसे जिद करने लगा कि टेनिस का सर्टिफिकेट दे दीजिए। रैकेट पकड़ने का तो शऊर नहीं। भला मैं क्या लिखती।
मिस डासन – क्या हुआ, उसने प्रोपोज किया? जरा उसका किस्सा कहो।
मिसेज डगलस – यही सुनने के लिए तो भागी आ रही हूँ।
जेनी – तुम्हें देखते ही भाग खड़ा हुआ। मगर तुमने बड़े मजे का सर्टिफिकेट दिया। फूला न समाता था। जेब में लिए फिरता था।
दोनों लेडियाँ – क्या-क्या! हमने कब कोई चिट्ठी दी!
जेनी – दिखाता तो था!
मिस डासन – तो कमबख्त ने अपने हाथ से लिख ली होगी। जभी भागा। कहाँ हैं दोनों चिट्ठियाँ?
जेनी – चिट्ठियाँ तो लेता गया! पर उसका मजमून मुझे याद है। हजरत ने अपनी दानिस्त में अपनी तारीफ लिखी थी।
(जेनी एक कागज पर दोनों खतों को याद से लिखती है और तीनों हँसते-हँसते लोट जाती हैं)
(परदा)
पाँचवा दृश्य
(योगराज का बंगला। प्रातःकाल। योगराज और जेनी एक कमरे में बैठे बातें कर रहे हैं। योगराज के मुख पर शोक का गाढ़ा रंग झलक रहा है! आँख सूजी हुई है, नाक का सिरा लाल, कंठ स्वर भारी। जेनी सफरी कपड़े पहने हुए हैं। मालूम होता है, अभी बाहर से आई है)
जेनी – मुझे यही पछतावा हो रहा है कि एक दिन पहले क्यों न आई। जिस समय मुझे तार मिला, अम्माँ कुछ अस्वस्थ थीं। मैंने समझा जरा इनकी तबियत सँभल जाए, तो चलूँ! अगर जानती यह आफत आने वाली है, तो तुरन्त भागती देखने भी न पाई।
योगराज – आपका नाम अन्त समय तक उनकी जबान पर था। बार-बार आपको पूछती थीं। (लम्बी साँस खींचकर) मैं तो कहीं का न रहा, मिस जेनी! मुझे जीवन में यह विभूति मिल गई थी कि उसे खोकर अब संसार मेरी आँखों में सूना हो गया। और यह सब मेरे ही कर्मों का फल है। मैं ही उनका घातक हूँ। मेरी ही भोग-लिप्सा ने उस कच्चे फल को तोड़कर जमीन पर गिरा दिया। उन्हें दो-बार गर्भपात हुआ; पर मेरी अंधी आँखों को कुछ न सूझता था। जिस फूल को सिर और आँखों और हृदय से लगाना चाहिए था, जिसकी सुगन्ध से मुझे अपने जीवन को बसाना चाहिए था, उसे मैंने पैरों से कुचला। कभी-कभी जी में ऐसा उबाल आता है कि दीवार से सिर पटक दूँ; यह दाग दिल से कभी न मिटेगा, यह घाव कभी न भरेगा! (रोता है)
जेनी – यों अधीर होने से कैसे काम चलेगा बाबूजी! मैं तो उसकी सहेली थी, लेकिन मुझे उससे जितना प्रेम था, उतना अपनी सगी बहन से भी न होता। फिर आपके शोक का अनुमान कौन कर सकता है। उसका शील-स्वभाव ही ऐसा था कि बेअख्तियार दिल को खींच लेता था, किन्तु अब धैर्य के सिवा और क्या कीजिएगा! खुदा की यही मर्जी थी, आदमी की उसमें क्या दखल! अब इसी विचार से दिल को तसल्ली दीजिए कि यह संसार उसके लिए। उपयुक्त स्थान था। सब स्वर्ग के योग्य थी और स्वर्ग ने उसे ले लिया।
योगराज - हाय! किसी तरह दिल को तसल्ली नहीं होती, मिस जेनी! यों अपनी मृत्यु से मर जाती, तो मैं सब्र कर लेता; लेकिन यह कैसे भूल जाऊँ कि मैंने ही उनकी हत्या की, मेरी ही विषयासक्ति ने उनकी जान ली। मैंने अमृत को इस तरह खाया, जैसे पशु घास खाता है। वह देवी मुझ पर कुरबान हो गई। मुझे प्रसन्न रखना उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था। मेरी इच्छा के विरुद्ध कभी एक शब्द भी मुँह से न निकाला। प्रातःकाल नींद खुलती, तो उनकी सहास मूर्ति सामने आमोद की वर्षा-सी करती हुई दिखाई देती थी। दिन-दिन दुर्बल होती जाती थी, लेकिन मेरी खातिरदारी में अणुमात्र भी कमी न करती थी। इस घर की एक-एक वस्तु पर उनका प्रेम अंकित है। वह खुद फूलों की तरह कोमल थीं। और फूलों से उन्हें असीम प्रेम था। यह गमले जो सामने रखे हुए हैं, उन्हीं के लगाए हुए हैं। खाने को जिस वस्तु में मेरी रुचि देखती, उसे अपने हाथों से पकातीं। कुर्सियों पर जो यह फूलदार गद्दे है, उन्हीं के काढ़े हुए हैं। मेज पर जो मेजपोश है, उन्हीं का काढ़ा हुआ है। तकियों के गिलाफ उन्हीं के बनाएँ हुए है, किस-किस बात को रोऊँ। उन्होंने अपने को मुझ पर अर्पित कर दिया। मुझ जैसा अनाचारी, व्यसनी, अधम व्यक्ति इस योग्य न थी कि उसे ऐसी देवी मिलती। ईश्वर ने सुअर के गले मे मोतियों की माला डाल दी?
(वह चुप हो जाता है और कई मिनट तक आँख बन्द किए बैठा रहता है। सहसा सिर पर जोर से हाथ मारकर कमरे से निकलता है और बगीचे की ओर भागता है। जेनी उसके पीछे-पीछे जाती है वह बगीचे में खड़ा होकर फूलों की क्यारियों की ओर ध्यान से देखता है, जैसे किसी को खोज रहा हो। फिर वहीं से लपका हुआ आता है और उमा के कमरे का परदा हटाकर धीरे से अन्दर जाता है और कमरे को खाली पाकर जोर से छाती पीटकर जमीन पर गिर जाता है। जेनी की आँख से आँसू बहने लगते हैं। दौड़कर पानी लाती है और उसके मुँह पर पानी के छींटे देती है। एक मिनट में योगराज चौंककर उठ बैठता हैं)
जेनी – बाबूजी, आप बुद्धिमान होकर नादान बनते हैं। इस तरह होश-हवास खो देने से क्या फायदा होगा।
योगराज – कह नहीं सकता मुझे क्या हो जाता है, मिस गार्डन! मुझे ऐसा मालूम होगा है जैसे उमा अपने कमरे में बैठी हुई है, जैसे बगीचे में घूम रही है! जानता हूँ, अब इस जीवन में उनके दर्शन न होंगे, लेकिन न जाने क्यों यह भ्रम हो जाता है! मन किसी के मुँह से यह सुनने के लिए लालायित रहता है कि वह दस-पाँच दिन के लिए कहीं चली गयी है। कभी न मिलेंगी, सदा के लिए चली गई, यह असह्य है, मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकता...! (एक क्षण के बाद सिर पर हाथ मार कर) मुझे इसका ध्यान ही न रहा कि आप सफर करके आ रही हैं! हाय? आज वह होतीं, तो आपको देखकर कितनी खुश होतीं। मैं आपकी क्या खातिर कर सकता हूँ, खातिर करने वाली तो चली गई! (महाराज को पुकारता है) देखो, मिस साहब के लिए नाश्ता लाओ। बहुत जल्द और महरी को भेजो, आपका हाथ-मुँह धुलाए।
जेनी – आप जरा भी तकल्लुफ न करे बाबूजी! अभी नाश्ता करने की जरा भी इच्छा नहीं। जी नहीं चाहता। योगराज - तो फिर आपकी खातिर क्या करूँ। आइए, आपको उमा का कमरा दिखाऊँ। देखिए उन्होंने कैसी-कैसी साहित्य की पुस्तकें जमा कर रखी थी। उनकी कविताएँ आपको सुनाऊँ।
(दोनों उमा के कमरे में जाते हैं जो कालीन और गद्देदार कोचों और शीशे के सामानों से सजा हुआ है। योगराज एक आल्मारी खोलता है। उसमें उमा के आभूषणों की संदूकची निकल आती है। योगराज तुरन्त उसे निकाल लेता है और उसे खोलकर एकएक आभूषण लेकर जेनी को दिखाता है)
योगराज – यह उनके आभूषण हैं। इन्हें पहनकर वह कितनी प्रसन्न होती थीं। इनके एक-एक अणु में उनके स्पर्श का सौरभ है। इन्होंने अपनी सुनहरी आँखों से उनके रूप की छटा देखी है। यह उनके आदर और प्रेम के पात्र रह चुके हैं। यह इस दुरवस्था में पड़े रहें, यह मैं नहीं देख सकता। उन्हें अपने आभूषणों की यह दशा देखकर स्वर्ग में भी कितना दुःख होता होगा। मैं आपके मनोभावों पर आघात नहीं करना चाहता, मिस गार्डन। क्षमा कीजिएगा, लेकिन आप इन चीज़ों को स्वीकार कर लें, तो उनकी आत्मा को कितनी शान्ति होगी! इनका कोई दूसरा उपयोग ऐसा नहीं है, जिससे उन्हें इतना आनन्द हो। आपको वह अपनी बहन समझती थीं और इ नाते से मैं आपको इन्हें स्वीकार करने के लिए मजबूर कर सकता हूँ।
(विक्षिप्तों की तरह मुस्कराता है)
जेनी – (सजल नेत्रों से) आपने तो मेरे लिए कुछ कहने की गुंजाइश नहीं रखी बाबूजी! लेकिन मैं अपने को इस योग्य नहीं समझती, आप इन्हें उनकी स्मृति-स्वरूप अपने पास सुरक्षित रखें। शायद कोई ऐसा समय आवे, जब इनका दावेदार घर में आ जाय। इन्हें मेरी ओर से उसकी भेंट कीजिएगा।
योगराज – (ठट्ठा मारता है) वह समय कभी न आएगा – जेनी! उमा ने जो स्थान खाली कर दिया है, वह हमेशा खाली रहेगा - हमेशा! आप मेरी इस याचना को अस्वीकार करके मुझे बड़ा । सदमा पहुँचा रही हैं, और उनकी आत्मा को भी; लेकिन मैं जिद्दी आदमी हूँ, जेनी। कभी-कभी पागलों के-से काम करने लगता हूँ। आइए, मैं आपको एक चीज पहनाऊँ। चोट खाए हुए दिल की गुस्ताखियों को क्षमा कीजिएगा। (वह उस हार को जेनी के गले में डाल देता है। जेनी सिर झुकाए सजल नेत्र शोकातुर बैठी हुई है। योगराज उसकी कलाइयों पर कंगन, शेरदहाँ, ब्रेसलेट पहनाता है, गले में नेकलेस डाल देता है। पैरों में पाजेब डालने के झुकता है। जेनी जल्दी से पाँव हटा लेती है और उसके हाथ से पाजेब लेकर पहन लेती है। सामने आईना रखा हुआ है। जेनी की उस पर नजर पड़ जाती है, वह उसमें अपनी सूरत देखती है और खिलखिलाकर हँस पड़ती है।
जेनी – आपने तो मुझे गुड़िया बना दिया। मुझे तो यह चीज बिल्कुल शोभा नहीं देती।
योगराज - आप मेरी आँखों से नहीं देख रही हैं मिस जेनी! मुझे तो ऐसा मालूम हो रहा है कि उमा मेरे ऊपर तरस खाकर आकाश से उतर आई है। आप में और उसमें इतना सादृश्य है, इसका अब तक मुझे अनुमान न था। तुम मेरी उमा हो, जेनी! तुममें उसी आत्मा का आभास है, वही रूप-माधुर्य है, वही कोमलता है। तुम वही हो, मेरी प्यारी उमा! तुम मुझसे क्यों रूठ गई थीं? बोलो, मैंने क्या अपराध किया था? इस तरह कोई अपने प्रेमी से आँखें फेर लेता है! (वह फूट-फूटकर रोने लगता है)
जेनी – (घबराकर) बाबूजी! होश में आइए। यह आपकी क्या दशा है।
(आदमियों को पुकारती है)
(पटाक्षेप)
छटा दृश्य
(योगराज का बंगला। जेनी और योग बैठे बातें कर रहे हैं)
जेनी – आयी थी दो दिन के लिए और रह गयी तीन महीने! माँ मुझे रोज कोसती होगी। मैंने कितनी ही बार लिखा कि यहीं आ जाओ, पर आती ही नहीं। मैं सोचती हूँ, दो-चार दिन के लिए घर हो आऊँ।
योगराज – अजीब स्वभाव है उनका। रुपये भी वापस करत देती है, घर से आती भी नहीं। आखिर चाहती क्या है?
जेनी – बस यही कि मैं शादी कर लूँ और उनके पास रहूँ। शायद उन्हे यह ख़ौफ़ भी हो कि कहीं तुम मुझे लेकर भाग न जाओ।
योगराज – (हँसकर) तुम जाओगी, तो फिर लौटकर न आने पाओगी। मेरा फिल्म अधूरा रह जाएगा। जब तक ड्रामा पूरा न हो जाय, मैं तुम्हें एक दिन के लिए भी नहीं छोड़ सकता। और अब तुमसे क्या छिपाऊँ जेनी! छिपाना व्यर्थ है। शायद तुमने पहले ही भाँप लिया है। अब मैं तुम्हारे बगैर जिन्दा नहीं रह सकता। मैंने तुममें अपनी उमा को फिर से पाया है। अगर उस वक़्त तुम न आती, मालूम नहीं मेरी क्या हालत होती। शायद दीवाना हो जाता, यह कहीं डूब मरा होता। तुमने आकर मेरे तड़पते हुए हृदय पर मरहम रखा और मुझे जिला लिया।
जेनी – इसीलिए अब मेरा यहाँ से जाना ज़रूरी है। मैं जाना नहीं चाहती। शायद इतना तुम भी समझ गये होंगे, क्यों नहीं जाना चाहती। लेकिन इसका नतीज़ा क्या है? खुद रो-रोकर मरूँ और तुम्हें भी हैरान करूँ। मैं तो रोने की आदी हूँ। लेकिन तुम्हारे रास्ते का काँटा क्यों बनूं? तुम्हारा जी थोड़े दिनों में बदल जाएगा। जीवन के आमोद-प्रमोद तुम्हें फिर अपनी ओर खींच लेंगे और जीवन की अभिलाषाएँ फिर जाग उठेगी। तुम इतने सहृदय, इतने उदार, इतने सज्जन, इतने उन्नतात्मा हो कि जिस किसी से भी तुम्हारा सम्पर्क हो जाएगा, उसमें तुम अपना आदर्श आरोपित कर दोगे। जब मुझ जैसी औरत में तुमने गुण देख लिए, तो मुझे मालूम हो गया कि तुम अपना स्वर्ग आप बना सकते हो मिट्टी को भी सोना बनाने का मन्त्र तुम्हें आता है। मैं कभी किसी से प्रेम कर सकूँगी, इसकी मैंने कल्पना तक न की थी। प्रेम मेरे लिए विनोद और परिहास की वस्तु थी। तुमने मेरे हृदय में प्रेम की ज्योति जलायी और अब उस पिछले जीवन की याद करती हूँ तो मालूम होता है कितना नीरस, कितना अस्वाभाविक था, लेकिन इसका कोई इलाज नहीं। विधि हमारे और तुम्हारे बीच में खड़ी है और -
योगराज – क्या उस विधि पर हम विजय नहीं पा सकते जेनी?
जेनी – कैसे?
योगराज – हमारी शादी नहीं हो सकती?
जेनी – धर्म-बन्धन को क्या करोगे!
योगराज – मैं धर्म के बन्धन को तोड़ दूंगा?
जेनी – (हाथ से मना करके) नहीं नहीं, मैं तुम्हें समाज में अछूत नहीं बनाना चाहती। तुम्हारा समाज से निकाल दिया जाना, मेरे लिए असह्य है मैं तुम्हें इतने घोर धर्म-संकट में नहीं डाल सकती। मेरे प्रति तुम्हारा जो सद्भाव हो, उस पर इतना भारी बोझ लादना कि कुछ दिनों में वह दब जाय, न मेरे लिए अच्छा है, न तुम्हारे लिए। मैं मानती हूँ, तुम मेरी खातिर वह अरमान और उपहास बर्दाश्त करोगे, लेकिन मैं इतनी स्वार्थिनी नहीं हूँ।
योगराज – मैं समाज और उसके बन्धनों की परवा नहीं करता जेनी! अगर मैं कोई ऐसा काम करूँ, जिससे समाज का अहित होता हो, तो बेशक समाज मेरा बहिष्कार कर सकता है, लेकिन मैं अपने व्यक्तिगत अधिकार को समाज के भय से नहीं छोड़ना चाहता।
जेनी – (सोचकर) नहीं, ऐसे मामलों में तर्क से काम नहीं चल सकता। मुझे जाने दो। मैं जानती हूँ, तुमसे अलग रहकर संसार मेरे लिए सूना हैं, लेकिन मुझे इस विचार से सन्तोष होता रहेगा कि मैंने संसार के निर्दय आघातों से तुम्हारी रक्षा की।
योगराज – यह संतोष बहुत थोड़े दिन रहेगा, जेनी! अगर तुम्हारा खयाल है कि तुम्हारे जाने के बाद मैं यह सब कुछ भूल जाऊँगा और फिर किसी रूपमती रमणी से विवाह करके आनन्द से रहूँगा, तो वह गलत है। तुमने सोचा है, मैं अपना स्वर्ग आप बना सकता हूँ। तुमसे मुझे जो प्रेम है, उसे तुम मेरी शक्ति का प्रमाण समझ रही हो। वास्तव में तुम अपना मूल्य बहुत कम समझ रही हो। मैंने तुम में जो कुछ पाया, जो कुछ देखा, वह फिर कहीं और देख सकूँगा, यह असम्भव है। इसका प्रमाण शायद तुम्हें जल्द मिल जाय। निःस्वार्थ प्रेम ऐसी सस्ती चीज नहीं है जो बाजार में मिलती हो।
(दोनों कुछ देर तक सिर झुकाए विचारों में डूबे बैठे रहते हैं)
योगराज – अगर यही समाज का भय है, तो क्यों न हम किसी दूसरी जगह चलें,जहाँ कोई हमें जानता हू न हो?
जेनी – (मुस्कराकर) किसान की खेती उसकी आँखों के सामने चरी जाय, क्या तभी उसे दुःख होगा? बिना कोई अपराध किए चोरों की तरह रहना बहुत सुखी जीवन नहीं हो सकता। हम जिनसे आदर और सम्मान चाहते हैं, उन्हीं से निंदा पाकर दुखी होते हैं। और लोग क्या कहते हैं, इसकी हमें परवा नहीं होती? मामा तो जहर ही खा लेंगी और शायद तुम्हारे घर वाले भी प्रसन्न न होंगे।
योगराज – तुम तो किसी बात पर राजी नहीं हो जेनी!
जेनी – जिन हालातों में ईश्वर ने हम दोनों को पैदा किया है, उसका एक ही इलाज है कि हम दोनों एक-दूसरे से अलग हो जायँ। मैं तुम्हारे लिए सब कुछ झेलने के लिए तैयार हूँ, लेकिन तुम्हें संकट में नहीं डाल सकती। तुम्हारे ऊपर यह आक्षेप मैं नहीं सुन सकती कि औरत के पीछे ईसाई हो गया और न शायद तुम मेरे ऊपर यह आक्षेप सुनना पसन्द करोगे के दौलत के पीछे एक आदमी के साथ चली गई। मैं आजकल की प्रथानुसार शुद्ध होकर तुम्हें उस आक्षेप से बचा सकती हूँ, लेकिन शुद्ध को मैं । बिल्कुल ढोंग समझती हूँ। मैं अपने स्वभाव से, अपने संस्कारों से, जो कुछ हूँ, वही रहूँगी। हवन कर लेने या दो-चार मन्त्र पढ़ लेने से मेरे संस्कार नहीं बदल सकते। ईसाई-धर्म में कम-से-कम एक तत्व अब भी है, और वह सेवा है। हिन्दू-धर्म में तो वह चीज भी नहीं। यहाँ तो केवल रूढ़ियाँ हैं, केवल पुरानी लकीरों को पीटना है। इसके लिए मेरी आत्मा तैयार नहीं। मुझे हँसकर विदा कर दो। मगर देखना यह विच्छेद हमारे आत्मिक ऐक्य को शिथिल न कर दे। मुझसे नाराज न होना, मेरी तरफ से आँखें न फेरना। जेनी तुम्हारी है, और तुम्हारी रहेगी, संसार की आँखों में नहीं - ईश्वर की आँखों में, जो संसार की सृष्टि करता है।
योगराज – (कम्पित स्वर में) तो यह तुम्हारा अंतिम फैसला है, जेनी?
जेनी – हाँ, प्यारे, यही मेरा अंतिम फैसला है। तुम थोड़े दिनों में मुझे भूल जाओगे। ईश्वर से मेरी यही दुआ होगी कि तुम मुझे जल्द-से-जल्द भूल जाओ! लेकिन भूलकर भी कभी-कभी याद कर लिया करना। (रोकर) ये दिन कितनी जल्द गुजर जाएँगे, यह मैंने न सोचा था! लेकिन जीवन के लिए जिस प्रेमाधार की जरूरत है वह तुमने मुझे दे दिया और वह मेरी उम्र भर के लिए काफी है। विवाह मेरी दृष्टि में आत्मिक संबंध है। उसे रस्म के बन्धनों से जकड़ना मैं अनावश्यक ही नहीं, पाप समझती हूँ। दिल का मिलना ही विवाह है। रस्म के बन्धन से स्त्री-पुरुष को बाँध ना तो वैसा ही है, जैसे दो पशु एक रस्सी में जोत दिए गए हों। जिस बन्धन का आधार समाज या धर्म का भय है, वह कभी सुखकर नहीं हो सकता। सुख का मूल स्वच्छंदता है, बन्धन नहीं। प्रेम भी जल-प्रवाह की भाँति मुक्त रहना चाहता है। अवरोध से उसमें कीट पैदा हो जाते हैं, दुर्गन्ध आने लगती है। मेरा तो विचार है कि प्रेम बन्धनों में पड़कर उस प्रकार निष्प्राण हो जाता है जैसे कोई पौधा प्रकाश न पाकर निर्जीव हो जाता है। मैं स्वेच्छा से यहाँ रात भर बैठी रह सकती हूँ, लेकिन कोई यह द्वार बन्द कर दे तो मैं इसी क्षण यहाँ से निकल भागने के लिए विकल हो जाऊँगी।
योगराज – मैं तो इसके लिए तैयार हूँ, जेनी!
जेनी – लेकिन मैं तो तुम्हें काँटों में नहीं उलझाना चाहती। समाज में तुम्हारा जो स्थान है, उसकी रक्षा करना भी मेरे प्रेम का अंग हो गया है। यह मेरे जीवन का नया अनुभव है। मुझे विश्वास है तुम अपने ऊपर इस निंदा और अपमान का कोई असर न होने दोगे! लेकिन मनुष्य तो प्रकृति के नियमों में जकड़ा हुआ है। उससे तुम कैसे बच सकते हो। इस ग्लानि और संकट के वातावरण में तुम बहुत दिन अपने का संभाल न सकोगे। मैं तुम्हारे ऊपर संदेह नहीं कर रही हूँ, लेकिन टॉल्स्टॉय की अन्नाकारेनिना का अन्त मेरी आँखों के सामने फिरा करता है। मैं उसे भूलना चाहती हूँ पर असफल होती हूँ।
योगराज – (निराश होकर) तुम्हारी जैसी इच्छा हो जेनी! मैं तुम्हें मजबूर नहीं कर सकता। जाओ, ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे। कभीकभी मेरी खोज-खबर लेती रहना – ! आज मुझे मालूम हुआ कि उमा मर गई और अब फिर नहीं आ सकती! (रोने लगता है। फिर अपने को संभालकर) यह सदमा शायद मैं बर्दाश्त न कर सकूँ, जेनी, लेकिन जाओ जहाँ रहो सुखी रहो।
जेनी – अपनी शादी में मुझे जरूर बुलाना।
योगराज – जल्द ही होगी, जेनी! सुनकर तुम खुद आओगी।
जेनी – हाँ, मैं खुद आऊँगी, कम-से-कम इत्तला तो देना। (आभूषणों की संदूकची उठाकर) और यह आभूषण उस सौभाग्यवती को मेरी ओर से भेंट कर देना।
योगराज – (संदूकची लेकर) धन्यवाद!
(उठाकर सिर झुकाए आहिस्ता कमरे के बाहर चला जाता है। जेनी एक क्षण तक उसे देखती रहती है, फिर आँखों से आँसू भरे अपना सामान बँधवाने लगती है)
(पटाक्षेप)
सातवाँ दृश्य
(जेनी का मकान। मिसेज गार्डन मुर्गियों को दाना चुगा रही है)
विलियम – मिस गार्डन का कोई पत्र आया थी?
मिसेज गार्डन – हाँ, वह खुद दो-एक दिन में आ रही है।
विलियम – मैं तो उसकी ओर से निराश हो गया हूँ, मिसेज गार्डन! मैं जो कुछ हूँ, वही रहूँगा। मैंने सब कुछ करके देख लिया। वह मेरे वश की नहीं। फिर अब वह खुद एक हजार महीना कमाती है। मेरे तीन सौ उसकी नजरों में क्या अँचेंगे। अब तो वह मुझसे विवाह भी करना चाहे तो न करूँ।
मिसेज गार्डन – सच! आखिर क्यों उससे नाराज हो गए? उसके एक हजार के साथ तुम्हारे तीन सौ मिलाकर तेरह सौ हो जाएँगे। इतना हिसाब भी नहीं जानते?
विलियम – लेकिन घर में मेरा पोजीशन क्या होगा, इसका भी आफ ख्याल करती हैं? मैं अपनी बीवी की नजरों में गिरना नहीं चाहता। आखिर वह किसलिए मेरा दबाव मानेगी, मेरा लिहाज करेगी। सब लोग यही कहेंगे कि अपनी बीबी की रोटियाँ खाता है, बीबी की कमाई पर शान जमाता है।
मिसेज गार्डन – (मुस्कराकर) तो इसमें क्या बुराई है? औरत अपने मर्द की कमाई खाती है, उस पर शान जमाती है, तब तो उसे जरा भी शर्म नहीं आती।
विलियम – अब मैं आपको कैसे समझाऊँ। मर्द मर्द है, औरत औरत है।
मिसेज गार्डन – अच्छा? आज मुझे यह नई बात मालूम हुई। मैं तो समझती थी, मर्द औरत है, औरत मर्द है।
विलियम - आप तो मजाक करती हैं। मेरे दिल में जो भाव है उसे कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं। मर्द चाहता है कि स्त्री उसका मुँह ताके, जिस चीज की जरूरत हो उससे कहे, उसका अदब और लिहाज करे। इसीलिए वह रात-दिन जी तोड़कर परिश्रम करता है, दगा-फरेब, छल-कपट सब कुछ केवल इसीलिए करता है कि स्त्री की निगाहों में उसकी शाख हो। उसकी सबसे बड़ी अभिलाषा यही होती है कि स्त्री की ज्यादा-से-ज्यादा खातिर कर सके, ज्यादा-से-ज्यादा आराम दे सके। वह स्त्री ही के लिए जीता है और स्त्री के लिए मरता है। वह उस पर न्यौछावर हो जाना चाहता है। लेकिन जब स्त्री खुद पुरुष से ज्यादा कमाती हो तो उसकी नजर में पुरुष का महत्त्व होगा?
मिसेज गार्डन – अच्छा, तुम्हारा यह मतलब है! लेकिन मैंने तो देखा है कि अक्सर पुरुषों को मालदार स्त्रियों की तलाश रहती है।
विलियम – ऐसे पुरुष बेहया है, मिसेज गार्डन! मैं उन्हें निर्लज्ज समझता हूँ। वह हमेशा स्त्री के मोहताज रहते हैं, उसकी खुशामद करते है, उसके इशारे पर चलते हैं। स्त्री उन पर शासन करती है, उनके काम पकड़कर जिस तरह चाहती है, उठाती और बैठाती है। मैं तो यह जिल्लत नहीं सह सकता।
मिसेज गार्डन – मैंने तो ऐसे मर्द भी देखे हैं, जो स्त्री के धन पर मजे उड़ाते हैं, और उस पर रोब भी जमाते हैं।
विलियम – उन लोगों को मैं भाग्यवान् समझता हूँ। मैं अपना शुमार उन भाग्यवानों में नहीं कर सकता। उनमें कुल-प्रतिष्ठा होगी, रूप-आकर्षण होगा, विद्या-गौरव होगा। मुझमें तो इनमें से एक गुण भी नहीं। मैं तो सीधा-साध गरीब मजदूर हूँ। मेरी हिमाकत थी कि मैंने जेनी का रोग पाला। वास्तव मे मैं उसके योग्य नहीं हूँ।
मिसेज गार्डन – इसीलिए कि वह तुमसे ज्यादा कमाती है?
विलियम – हाँ, प्यारी मिसेज गार्डन! मैंने अपनी गलती मालूम कर ली। इस बीच में मैंने एक बात और मालूम कर ली। देखिए, मेरी हँसी न उड़ाइएगा। मुझे मालूम हुआ है कि जीवन में मुझे ऐसी सहचरी की जरूरत है, जो मुझसे ज्यादा अनुभव, ज्यादा बुद्धि, ज्यादा धैर्य रखती हो, जो अपनी सलाहों से मेरी सहायता करती रहे, जिस पर मैं विश्वास कर सकूँ! मैं तुममें ये सभी गुण पाता। हूँ। (जमीन पर घुटने टेकता है) मैं आपसे प्रोपोज करता हूँ, मिसेज गार्डन! देखिए खुदा के लिए इंकार न कीजिएगा। मुझे अब ज्ञात हुआ कि जीवन के आनन्द के लिये रूप और यौवन की इतनी जरूरत नहीं है, जितनी अनुभव और सेवाभाव की। रूपवती युवती मुझमें हजारों त्रुटियाँ पाएगी। वह अपने साथ संदेह और ईर्ष्या लाती है। मुझे उसकी जासूसी करनी पड़ेगी। वह किससे बोलती है, किससे हँसती है, कहाँ जाती है, मुझे उसकी एक-एक गति पर निगाह रखनी पड़ेगी। यह झंझट मेरे मान का नहीं। आपके ऊपर मैं पूर्ण विश्वास कर सकता हूँ।
मिसेज गार्डन – (हर्षोन्मत्त होकर) भला सोचो तो विलियम, दुनिया क्या कहेगी, कि इस औरत को बुढ़ापे में यह हवस पैदा हुई है। यही करना था तो तीन साल पहले क्यों न किया। तब तो मैं इतनी बूढ़ी न थी। तब शायद तुम्हें कुछ अधिक संतुष्ट कर सकती।
विलियम – इसका तो मुझे भी खेद है।
मिसेज गार्डन – अच्छा बतलाओ, मुझ पर रोब तो न जमाओगे?
विलियम – नहीं, खुदा की कसम! मैं आपके हुक्म के बगैर एक कदम भी न चलूँगा।
(मिसेज गार्डन विलियम को छाती से लगती है)
मिसेज गार्डन – मैं तुम्हारी ओर से बहुत आशंकित थी विलियम, कि कहीं तुम किसी मायाविनी के जाल में फँस न जाओ। तुम इतने सरल, इतने निष्कपट, इतने भोले-भाले हो कि मुझे तुम्हारी ओर से बराबर यही खटका लगा रहता था। इसीलिए मैं तुम्हें जेनी से मिलाती रहती थी। जेनी में और चाहे कितनी बुराइयाँ हो, चंचलता नहीं है। तुम्हें याद है प्यारे विलियम, मेरी तुमसे पहली मुलाकात पार्क मे हुई थी। मैं गिरजे से लौट रही थी। उसी दिन तुमने मेरे हृदय में स्थान पा लिया था। मेरे दिल ने उसी दिन कहा था कि वह चिड़िया एक दिन तेरे पिंजरे में आएगी। आज वह सौभाग्य मुझे प्राप्त हो गया। चलो हम दोनों गिरजा में खुदा का शुक्र करें।
(पटाक्षेप)
आठवाँ दृश्य
(जेनी का विशाल भवन। जेनी एक सायेदार वृक्ष के नीचे एक कुर्सी पर विचारमग्न बैठी है)
जेनी – (स्वगत) मन को विद्वानों ने हमेशा चंचल कहा है। लेकिन मैं देखती हूँ कि इसके ज्यादा स्थिर वस्तु संसार में न होगी। कितना प्रयत्न किया कि रंजन को भूल जाऊँ, लेकिन जितना ही उससे दूर भागती हूँ उतना फंदा और कठोर होता जाता है। महीनों से प्यानो पर नहीं बैठी। दिल जैसे मर गया है। वही सूरत आँखों में फिरती है, वही बातें कानों में गूंजती है। यही रंजन से रूपवान पुरुष पड़े हुए है, उनसे कहीं विद्वान्, पर किसी से बोलने की इच्छा नहीं होती। मैं जानती हूँ मैं जरा भी हिम्मत दिखाऊँ तो वे मुझ पर प्राण देने लगेंगे। कितने आसक्त, लुब्ध नेत्रों से मेरी ओर देखते हैं। किसी से दो एक बात कर लेती हूँ तो कितने निहाल हो जाते है, पर उस देवता के सामने सब ये खिलौने हैं। खिलौने में रंग है, रूप है कला है, उस देवता से कहीं ज्यादा, पर कुछ बात है जो देवता में श्रद्धा और प्रेम उत्पन्न करती है, खिलौनों के प्रति केवल विनोद का भाव। वह क्या बात है? प्यारे रंजन, तुमने मुझ पर क्या जादू कर दिया।
(मिसेज विलियम आती है)
मिसेज विलियम – तू यहाँ कब तक बैठी रहेगी, जेनी! अब तो शबनम पड़ने लगी?
जेनी – कमरे में तो मेरा दम घुटता है मामा!
मिसेज विलियम – मैं बहुत अच्छा पुडिंग बनाया है। चल थोड़ासा खा ले। तूने दिन-भर कुछ नहीं लिया। जरा आईने में अपनी सूरत देख। जैसे छः महीने की रोगिनी हो।
जेनी – मेरी अभी कुछ खाने की इच्छा नहीं है, मामा! क्षमा करो। इधर कई दिनों से रंजन को कोई खत नहीं आया। मेरा दिल धड़क रहा है। कहीं दुश्मनों की तबियत खराब न हो।
मिसेज विलियम – जब तेरी तबियत का यह हाल है तो क्यों रंजन से विवाह नहीं कर लेती? वह बेचारा हर तरह राजी है, पर तुझे न जाने क्या खब्त हो गया है। खुद भी मरती है और उस बेचारे को भी रुलाती है। जब वह धर्म की ओर संबंधियों की परवाह नहीं करता तो उससे क्यों नहीं कहती – प्रभु मसीह पर ईमान लाए। प्रेम का उद्देश्य जीवन का सुख है, या सारी उम्र रोते रहना?
जेनी – यही तो मैं भी सोचती हूँ। मुझे में तो कोई तब्दीली हो न जाती, हाँ उनके समाज को संतोष हो जाता। अगर मैं जानती, उनका हृदय इतना कोमल है तो उन्हें छोड़कर न आती। मुझे तो अब अपनी जिद्द पर पछतावा हो रहा है। धर्म और सिद्धांत आदमी के लिए हैं। आदमी उनके लिए नहीं हैं। मामा, मैं तुमसे अपनी विकलता क्या कहूँ। ऐसा मन होता है कि पर होते तो इसी वक्त उड़कर पहुँच जाती और कहती – डार्लिंग, मुझे क्षमा करो। यह तीन महीने मैंने जिस तरह काटे हैं, वह तुमने देखा है? एक क्षण के लिए भी उनकी सूरत आँखों से नहीं उतरी। ऐसे । प्रेम पर अपना सर्वस्व अर्पण कर देने वाले प्राणी भी संसार में हैं, वह मैंने उन्हीं को देखा । मुझे स्वर्ग की विभूति मिल रही थी, मामा! मैंने समाज के भय से उसे ठुकरा दिया। मैंने समझा था मामा, मेरे चले जाने के बाद भोग-विलास में उनका जी बहल जाएगा, फिर किसी युवती से विवाह करके इनका जीवन सुखी हो जाएगा। क्या जानती थी वह मेरे वियोग में अपने को घुला डालेंगे। कल अगर उनका पत्र न आएगा तो मैं चली जाऊँगी मामा! तब मुझे तुम्हारी बड़ी चिंता थी, मामा? मैं डरती थी कहीं मैं उनसे विवाह कर लूँ तो तुम जहर न खा लो। अब मैं तुम्हारी ओर से भी निश्चिंत हूँ।
मिसेज विलियम – क्या तू समझती है विलियम से शादी कर लेने से मेरे दिल में तेरी मुहब्बत नहीं रही?
जेनी – यह बात नहीं है मामा! कम-से-कम तुम्हारे साथ एक आदमी तो है, जो तुम्हारी रक्षा करता रहेगा।
मिसेज विलियम – विलियम मेरे पीछे पड़ गया, प्राण दिए देता था, नहीं, इस उम्र में मुझे शौहर की हवस नहीं थी।
जेनी – तो मैं तुम्हें कुछ कहती थोड़े ही हूँ मामा! विलियम में अगर दो-एक बुराइयाँ हैं तो हजारों खूबियाँ भी है। मैं तो ज्योंज्यों उसका परिचय पाती हूँ, उनके प्रति मेरी श्रद्धा बढ़ती है। वह सचमुच ही तुम्हारे योग्य थे, मामा!
(तार का चपरासी तार लाता है। जेनी का रंग उड़ जाता है। काँपते हुए हाथों से लेती है और पढ़ते ही मूर्छित होकर गिर पड़ती है –
Yograj breathed his last with Jenny's name on his lips to the last moment.)
मिसेज विलियम – या खुदा, या मेरे परवरदिगार, यह क्या गजब हुआ।
(जेनी के हृदयस्थल पर हाथ रखती है। फिर बदहवास दौड़ी अंदर जाती है और गुलाबजल लाकर जेनी के मुख पर छिड़कती है। समीप कोई पंखा न होने के कारण उस समाचार-पत्र से हवा करती है, जो जेनी ने पढ़कर कुर्सी के नीचे रख दिया था। बीचबीच में खुदा का नाम लेती है और इंतजार भरी आँखों से फाटक की ओर देखती है कि विलियम आता होगा। एक मिनट के बाद जेनी सचेत हो जाती है)
जेनी – मैं बिल्कुल अच्छी हूँ मामा, तुम जरा न घबराओ। न जाने कैसा जी हो गया था, जैसे दिल बैठ गया हो। अब बिल्कुल अच्छी हूँ। इसका भय तो मुझे पहले से था। जिस वक्त मैं वहाँ से चली उसी वक्त उनकी हालत देखकर मुझे शंका हुई थी, लेकिन मैंने सोचा मर्द है, दस-पाँच दिन में इनका जी बहाल हो जायगा। क्या जानती थी वह दिन देखना पड़ेगा।
(एक क्षण में उसकी आँखें फिर चंचल हो जाती हैं। हिस्टीरिया की-सी दशा हो जाती है) कौन कहता है वह मर गए? बिल्कुल झूठ है। वह मेरे सामने हैं, मेरी आँखों में हैं, मेरे हृदय में हैं। हाँ, उसी तरह खड़े मुझे प्रेमातुर नेत्रों से देख रहे हैं। जरा उनकी नटखटी तो देखो मामा, परदे की आड़ में छिप-छिपकर मुझे धोखा देते हैं। मुँह धो रखिए, मैं ऐसे धोखों में नहीं आने की। (यकायक उठकर कमरे की तरफ चलती है। उसकी माँ भी पीछे-पीछे आती है। जेनी अपनी मेज पर से योगराज का चित्र उठाकर उसे हृदय से लगाती है और उसका चुम्बन लेती है!)
मिसेज विलियम – जेनी खुदा के लिए दिल को समझाओ।
जेनी – दिल को समझाकर क्या होगा, मामा। अब वह किसके काम का है। फिर जब वह मेरे पास भी हो! वह तो रंजन के साथ गया, नहीं मैं इस तरह बैठी रहती? रंजन मर जाते और मैं इस तरह बैठी रहती? ऐं! मैं इस तरह बैठी रहती! आँखों से खून निकल पड़ता, मेरी लाश जमीन पर पड़ी होती। लेकिन मैं यहीं बैठी हूँ, जैसे मुझे कुछ हुआ ही नहीं है।
(वह तस्वीर को मेज पर रख देती है और योगराज के पत्रों को निकालती है जो एक मखमली केस में रखे हुए हैं) मेरी अच्छी मामा, जरा बैठ जाओ, मैं तुम्हें उनके पत्र सुनाऊँ - 'मेरी बेवफा जेनी!' मैं उस वक्त उनसे रूठ गई थी कि मुझे बेवफा क्यों कहा; लेकिन अब मालूम हुआ उन्होंने मुझे खूब पहचान लिया था। बेवफा तो मैं हूँ ही, नहीं उन्हें वहाँ छोड़कर चली आती। मैं बेवफा हूँ, बेदर्द हूँ, मायाविनी हूँ! हाय! ये गालियाँ कितनी प्यारी लगती हैं। तब मैंने उन्हें डाँट बताई थी! इस आक्षेप को स्वीकार न सकती थी। अब मुझे कौन बेवफा कहेगा? कौन बेदर्द कहेगा! कौन मायाविनी कहेगा? अब किसके साथ बेवफाई करूँगी? मामा, बताओ कैसे दिल को समझाऊँ? कैसे इस अभागे को समझाऊँ? (सिर से बाल नोचती है। मिसेज विलियम उसे छाती से लगाती है।
मिसेज विलियम – बेटा! जेनी, मेरा कलेजा।
जेनी – मामा मैं भूली जाती हूँ, उन्हें छोड़कर यहाँ क्या करने आई थी। बिल्कुल याद नहीं आता। बताओं मैं यहाँ क्या करने आई थी? मैंने क्यों उन्हें कत्ल किया? हाँ, याद आ गया। उनके कुल-मर्यादा और धर्म की रक्षा करने के लिए! अपने धर्म की रक्षा करने के लिए! सोचो इस अनर्थ को? जिसके चरणों पर अपने प्राणों को अर्पित कर देना मेरे जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा थी, उसे मैंने इन्हीं हाथों से कत्ल कर दिया। मैंने नहीं, मेरे धर्म ने कत्ल कर दिया। धर्म ने भी नहीं, मेरी अभिलाषा ने कत्ल किया। लोगों ने यह तरह-तरह के मत बनाकर संसार में कितना विष बोया है, कितनी आग लगाई है, कितनी द्वेष फैलाया है। क्या धर्म इसीलिए आया है कि आदमियों की अलग-अलग टोलियाँ बनाकर उनमें भेद-भाव भर दे? ऐसा धर्म लुटेरों का हो सकता है, स्वार्थियों का हो सकता है, ईश्वर का नहीं हो सकता।
मिसेज विलियम – बेटा, धर्म खुदा ने न भेजा होता, तो दुनिया अब तक तबाह हो गई होती। आदमी-आदमी को खा गया होता। बाइबिल तो खुदा का कलामे पाक है।
जेनी - खुदा के तो सभी कलामे पा हैं; लेकिन उन पाककलामों ने संसार का क्या उपकार किया, इंसान की इंसानियत को कितना सुधारा? आज दौलत जिस तरह आदमियों का खून बहा रही है, उसी तरह, उससे ज्यादा बेदर्दी से, धर्म ने आदमियों का खून बहाया है। दौलत कम-से-कम इतनी निर्दय, कठोर नहीं होती! लेकिन दौलत वही कर रही है, जिसकी उससे आशा थी, धर्म तो प्रेम का संदेश लेकर आता है और काटता है – आदमियों का गला! वह मनुष्य के बीच ऐसी दीवार खड़ी कर देता है जिसे पार नहीं किया जा सकता। आखिर सम्पूर्ण जगत की एक ही आत्मा तो है। धर्म का यह भेद क्या आत्मा की एकता को मिटा सकता है? वह खुदा जो एक-एक अणु में मौजूद है, उसे हम गिरजे और मसजिद और मंदिरों में बन्द कर देते हैं और एक-दूसरे को काफिर और म्लेच्छ कहते हैं। पूछो, उन विश्वात्मा को तुम्हारे इन झगड़ों से क्या मतलब? उसे इसकी क्या परवाह कि तुम गिरजे में जाते हो या मसजिद में। वह तो केवल इतना देखती है, कि तुम प्रेम से रहते हो या नहीं! उसके मुक्त प्रवाह में जो कोई भी मेंड़ बाँधेगा, वह प्रकृति के नियम को तोड़ेगा और उसे इसकी सजा जरूर मिलेगी। हम आए दिन वह सजा पा रहे हैं, फिर भी हमारी आँखें नहीं खुलती, आदमी की शक्ति है कि उस जगदात्मा को टुकड़ों में बाँट सके? उस व्यापक चेतना को! कभी नहीं। यह तो कोई धर्म नहीं।
मिसेज विलियम – खुदा ने केवल हमारे नबी को भेजा था।
जेनी - खुदा ने किसी नबी को नहीं भेजा, मामा। हमारे जितने धर्म हैं, सभी बिगड़े हुए समाज को सुधारने की तदबीरें हैं, लेकिन धर्मों पर खुदा की कुछ ऐसी मार है कि वह आते तो हैं सुधार के लिए; लेकिन उल्टे और बिगाड़कर जाते हैं। यह वही पुराने जमाने की गिरोह बन्दी है, जब गुफाओं में बसने वाला आदमी हिंसक पशुओं या अपनी ही जाति की दूसरी टोलियों में अपनी रक्षा करने के लिए गिरोह बनाकर रहता था। नबी आए, वली आए, अवतार हुए, खुदा खुद आया। बार-बार आया। नतीजा क्या हुआ? लड़ाई और कत्ल! रंग का भेद, नस्ल का भेद, इन सब भेदों को मिटाने का ठेका लिया था धर्म ने! लेकिन वह स्वयं भेद का कारण बन गया - ऐसे भेद का – जो सब भेदों से कठोर है। मैं तुम्हारी लड़की हूँ, मुझे तुमने अपने प्राणों का रक्त पिलाकर पाला है। मैं जानती हूँ तुम्हें संसार में मुझसे न्यारी कोई वस्तु नहीं हैं; लेकिन आज मैं गिरजे न जाकर मस्जिद में प्रार्थना करने जाऊँ तो तुम मेरी सूरत से नफरत करोगी। संभव है, अपने हाथों से मेरी हत्या कर डालो। मैं भी वही हूँ, तुम भी वही हो, फिर यह द्वेष कहाँ से आ गया। मैं कहती हूँ यह धर्म का प्रसाद है जिसने हमारे मन को संकीर्ण बना डाला है।
मिसेज विलियम – तू मुझे इतनी धर्मान्ध समझती है, बेटी! मुझे अफसोस जरूर होगा, मैं खुदा से तेरी मुक्ति के लिए दुआ करूँगी, लेकिन तेरा अहित नहीं कर सकती, कभी नहीं।
जेनी – मामा, खुदा तुझे जन्नत में जगह दे, तुमने मेरे हृदय का बोझ उतार दिया। अब मुझे कोई शंका नहीं, कोई बाधा नहीं। आज मैं इन सारे ढकोसलों को, इन सारे बनावटी बंधनों को, प्रेम की वेदी' पर अर्पण करती हूँ। यही ईश्वर का धर्म है। धन का धर्म है, विद्या का धर्म, राष्ट्र का धर्म संघर्ष हो सकता है। खुदा का धर्म प्रेम है और इसी धर्म को स्वीकार करती हूँ। शेष धोखा है। आप फौरन मोटर मँगवाइए। गाड़ी तो दो बजे रात को जाएगी। मैं उसका इंतजार नहीं सकती। मोटर से जाऊँगी। सबेरे तक पहुँच जाऊँगी। वहीं प्रभात के शुभ-मुहूर्त में रंजन से मेरा विवाह होगा, बड़ी धूमधाम के साथ, हवन कुंड की परिक्रमा करके, श्लोक और मंत्र पढ़कर। मेरे लिए आलटर और हवनकुंड में कोई अन्तर नहीं रहा। मुझे शक्ति दो ईश्वर! कि आजीवन इस व्रत को निभा सकूँ। परम पिता! मुझे बल दो, धैर्य दो, और बुद्धि दो।
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